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आलोचना प्रकरण
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२. कुल सम्पन्न - उत्तम कुल वाला - यह व्यक्ति अपने द्वारा लिए गए प्रायश्चित्त को नियमपूर्वक अच्छी तरह पूरा करता है ।
३. विनय सम्पन्न - विनयवान, यह बड़ों की बात मानकर हृदय से आलोचना कर लेता है ।
४. ज्ञान सम्पन्न – ज्ञानवान, मोक्ष मार्ग के लिए क्या करना क्या नहीं करना इस बात को भलीभांति समझकर आलोचना कर लेता है ।
५. दर्शन सम्पन्न – श्रद्धावान, यह भगवान के वचनों पर श्रद्धा होने के कारण यह शास्त्रों में बताई हुई प्रायश्चित्त से होने वाली शुद्धि को मानता है एवं आलोचना कर लेता है।
६. चारित्र सम्पन्न - उत्तम चारित्र वाला, यह अपने चारित्र की शुद्धि के करने के लिए दोषों की आलोचना करता है।
७. क्षान्त—–क्षमावान्, यह किसी दोष के कारण गुरु से भर्त्सना या फटकार मिलने पर क्रोध नहीं करता, किन्तु अपना दोष स्वीकार कर आलोचना कर लेता है ।
८. दान्त - इन्द्रियों को वश में रखने वाला कठोर से कठोर प्रायश्चित्त को भी शीघ्र स्वीकार कर लेता है। एवं पापों की आलोचना भी शुद्ध हृदय से करता है।
६. अमायी माया-कपट रहित, यह अपने पापों को बिना छिपाये खुले दिल से आलोचना करता है ।
१०. अपश्चात्तापी - आलोचना कर लेने के बाद पश्चात्ताप न करने वाला, यह आलोचना करके अपने आपको धन्य एवं कृतपुण्य मानता है । "
प्रश्न १०. आलोचना देने का अधिकारी कौन होता है ?
उत्तर - दस स्थानों से सम्पन्न अनगार आलोचना देने का योग्य होता है
१. आचारवान् - ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य - इन पांच आचारों से युक्त ।
२. आधारवान् - आलोचना लेने वाले के द्वारा आलोच्यमान समस्त अतिचारों को जानने वाला ।
१. ठाणं १०/७१
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