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८. आलोचना प्रकरण
प्रश्न १. आलोचना किसे कहते है ?
उत्तर - आलोचना का अर्थ - गुरु के समक्ष अपने दोषों को प्रकट करना । जिस पाप की शुद्धि आलोचना से ही हो जाती है उसे आलोचनार्ह प्रायश्चित्त कहते है ।' मर्यादा में रहकर निष्कपट भाव से अपने सभी दोषों को गुरु के आगे प्रकट कर देने का नाम आलोचना है।
प्रश्न २. आलोचना के पर्याय क्या हैं?
उत्तर - विकटना, आलोचना, शोधि, निन्दा, गर्हा, शल्योद्धरण, आख्यान और प्रादुष्करण ये आलोचना के पर्याय है।
प्रश्न ३. आलोचना की विधि क्या है ?
उत्तर - जैसे एक बालक अपने कार्य अकार्य सरलता से बता देता है वैसे ही साधक को माया और अहंकार से मुक्त होकर आलोचना करनी चाहिए । उत्तराध्यन में कहा- भिक्षु सहसा चण्डालोचित कर्म कर उसे कभी न छिपाए । अकरणीय किया हो तो किया और नहीं किया हो तो न किया कहे । *
प्रश्न ४. आलोचना के कितने प्रकार है ?
उत्तर - आलोचना के दो प्रकार हैं - १. मूल गुणों की आलोचना २. उत्तरगुणों की आलोचना । *
प्रश्न ५. आलोचना किससे करें ?
उत्तर- आचार्य, उपाध्याय, बहुश्रुत साधर्मिक साधु, बहुश्रुत अन्य संभोगिक
१. उशावृ ६०८, भिक्षु आगम
२. भगवती २७/७ टीका
३. भिक्षु आगम शब्द कोश उशावृ ६०८, ओघनियुक्ति ७६१
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४. (क) ओघनियुक्ति ८०
(ख) उत्तराध्ययन १/११ ५. ओघ निर्युक्ति ७६ ०
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