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साध्वाचार के सूत्र प्रश्न ८. क्या आगमों में दीक्षा किसी विशेष दिशा में देने का संकेत हैं? उत्तर-हां, आगमों में पूर्व-उत्तर दिशा में दीक्षा देने का उल्लेख है। केवल दीक्षा
ही नहीं स्वाध्याय (पठन-पाठन-व्याख्यान धर्मचर्चा आदि) आलोचनाप्रतिक्रमण एवं अनशन संथारा करने में भी इन्हीं दो दिशाओं को महत्त्व
दिया गया है। प्रश्न ६. दीक्षित व्यक्ति कितने प्रकार के होते हैं ? उत्तर-चार प्रकार के हो सकते हैं:-१. सिंहवृत्ति से (उन्नत भावों से) दीक्षा
लेकर सिंहवृत्ति से पालने वाले कीर्तिधर सुकौशल (धन्नासेठवत्)। २. सिंहवृत्ति (उन्नत भावों से) से दीक्षा लेकर शृगाल वृत्ति से (दीनवृत्ति से) पालने वाले (कण्डरीकवत्)। ३. शृगाल वृत्ति से दीक्षा लेकर सिंहवृत्ति से पालने वाले (मेतार्यमुनिवत्)। ४. शृगाल वृत्ति से दीक्षा लेकर शृगाल
वृत्ति से पालने वाले (सोमाचार्य, गर्गाचार्यवत्)। प्रश्न १०. क्या जैन दीक्षा में कोई जाति-सम्बंधी नियम है ? उत्तर-जाति संबंधी कोई विशेष नियम नहीं हैं। जिसके भी दिल में वैराग्य हो,
वही दीक्षा ले सकता है। जैसे–चौबीस तीर्थंकर, नव बलदेव, दस चक्रवर्ती एवं अनेक राजा-महाराजा दीक्षित हुए ये सभी क्षत्रिय थे। गौतमादि ग्यारह गणधर ब्राह्मण थे। जम्बूस्वामी वैश्य (वणिक्) थे एवं
हरिकेश मुनि शूद्र-चाण्डाल थे। प्रश्न ११. दीक्षा लेकर साधुओं को क्या करना चाहिये? उत्तर-दीक्षा लेने के बाद गुरु की सेवा में रहकर साधु सामाचारी का ज्ञान करना
चाहिए एवं उसका विधिपूर्वक पालन करना चाहिए। (साधु के आचरण को सामाचारी कहते हैं)। सामाचारी दस प्रकार की है। (१) इच्छाकार (२) मिथ्याकार (३) तथाकार (४) आवश्यकी (५) नैषेधिकी (६)
आपृच्छना (७) छन्दना (८) प्रतिपृच्छना (९) निमंत्रणा (१०) उपसंपदा। प्रश्न १२. क्या साध्वियां भी साधु को दीक्षा दे सकती हैं ? उत्तर-साधुओं के अभाव में दे सकती हैं लेकिन आचार्यादिक साधुओं की निश्रा
में देने की विधि है, अपनी निश्रा में नहीं दे सकती अर्थात् अपना शिष्य नहीं बना सकती।
१. स्थानांग २/१/१६७-१६८ २. स्थानांग ४/३/४८० ३. (क) भ. २५/७/५५५
(ख) स्थानां. १०/१०२
(ग) उत्तरा. २६/१-७ ४. व्यवहार ७/६ भाष्य २६५०
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