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साध्वाचार के सूत्र प्रश्न ३०६. साधु के गुणों का स्मरण करने से क्या होता हैं ? उत्तर-साधु के गुणों का जप करने से शनि, राहु, केतु ग्रह की पीड़ा नष्ट होती
प्रश्न ३०७. क्या साधु गृहस्थ से शारीरिक सेवा ले सकता है ? उत्तर-नहीं ले सकता, विशेष चिकित्सा अपवाद है। प्रश्न ३०८. क्या साधु गृहस्थ की शारीरिक सेवा कर सकता है ? उत्तर-आध्यात्मिक सेवा कर सकता है, शारीरिक सेवा नहीं। प्रश्न ३०६. क्या आहार पानी के लिए साधु गृहस्थ के बर्तन काम में ले
सकता है? उत्तर-नहीं, अपने निश्रा के पात्र काम में ले सकता है। प्रश्न ३१०. साधु-साध्वी के निमित्त बनाये हुए वस्त्र, पात्र, मकान,
आहारादि का साधु-साध्वी सेवन कर सकते हैं या नहीं? उत्तर-नहीं, क्योंकि यह कल्पनीय नहीं है, अनाचार है। प्रश्न ३११. संयम किसे कहते हैं एवं कितने प्रकार का होता है ? उत्तर-सब के प्रति समभाव रखना संयम है। वह सतरह प्रकार का होता है। प्रश्न ३१२. सतरह प्रकार के संयम कौन से हैं? उत्तर-१. पृथ्वीकाय संयम २. अप्काय संयम ३. तेजस्काय संयम ४.
वायुकाय संयम ५. वनस्पति काय संयम ६. द्वीन्द्रिय संयम ७. त्रीन्द्रिय संयम ८. चतुरिन्द्रिय संयम ९. पंचेन्द्रिय संयम १०. अजीवकाय संयम ११. प्रेक्षा संयम १२. उपेक्षा संयम १३. परिष्ठापन संयम १४. प्रमार्जन
संयम १५. मनः संयम १६. वचन संयम १७. काय संयम। प्रश्न ३१३. क्या साधु बिना किंवाड़ वाले स्थान में ठहर सकते हैं? उत्तर-हां, साधु ठहर सकते हैं, साध्वियां नहीं। प्रश्न ३१४. कितने वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले मुनि को अंगों (आगमों) का
अध्ययन करना कल्पता है ? उत्तर- साधुओं के दीक्षा पर्याय के साथ आगम अध्ययन का क्रम रखा गया है?
१. तीन वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले श्रमण-निग्रंथ को आचार प्रकल्प नामक अध्ययन पढ़ना कल्पता है। २. चार वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले श्रमण-निर्ग्रन्थ को सूत्रकृतांग नामक
दूसरा अंग पढ़ना कल्पता। १. समवाओ १७/२
२. समवाओ १७/२
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