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साधु प्रकरण
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उत्तर-आठ। प्रश्न १३२. छेदोपस्थापनीय चारित्र में दण्डक कौन सा? उत्तर-एक-इक्कीसवां (मनुष्य पञ्चेन्द्रिय)। प्रश्न १३३. छेदोपस्थापनीय चारित्र में वीर्य कौन सा? उत्तर-एक–पंडित वीर्य । प्रश्न १३४. छेदोपस्थापनीय चारित्र में लब्धि कितनी पाई जाती है। उत्तर-पांच-दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य। प्रश्न १३५. छेदोपस्थापनीय चारित्र में पक्ष कितने पाये जाते हैं ? उत्तर-एक-शुक्ल पक्ष । प्रश्न १३६. छेदोपस्थापनीय चारित्र में दृष्टि कितनी पायी जाती हैं ? उत्तर-एक-सम्यक् दृष्टि।६ प्रश्न १३७. छेदोपस्थापनीय चारित्र भवी या अभवी? उत्तर-भवी। प्रश्न १३८. वर्तमान समय के साधु-साध्वियों में कितने चारित्र हो सकते हैं? उत्तर-भरतक्षेत्र में वर्तमान में दो चारित्र हैं सामायिक व छेदोपस्थापनीय एवं
महाविदेह में तीन छेदोपस्थापनीय व परिहारविशुद्धि को छोड़कर। प्रश्न १३६. परिहारविशुद्धि चारित्र की परिभाषा एवं विधि क्या है ? उत्तर-परिहार का अर्थ तप है। जिसमें विशेष तपस्या द्वारा आत्मा की विशुद्धि
की जाती है, उसे परिहारविशुद्धि-चारित्र कहते हैं। इस चारित्र के धनी परिहारविशुद्धि-संयत कहलाते हैं। वे गण से अलग होकर अठारह मास तक कठोर साधना करते हैं। यह साधना तीर्थंकरों से ग्रहण की जाती है या जिन्होंने ग्रहण की हो, उनके पास ग्रहण की जाती है (तीसरी पीढ़ी नहीं चलती)। ग्रहण करनेवाले नव साधु होते हैं, कम से कम बीस वर्ष के दीक्षित होते हैं तथा जघन्य नवमपूर्व की तीसरी आचार वस्तु एवं उत्कृष्ट देश ऊन दशपूर्व के ज्ञानी होते हैं।
साधना करने वाले नव साधुओं में पहले चार साधु तपस्या करते हैं, चार १. २१ द्वार
५. २१ द्वार २. २१ द्वार
६. २१ द्वार ३. २१ द्वार
७. २१ द्वार ४. २१ द्वार
८. भगवती २५/७
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