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साधु प्रकरण
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स्थितियों में छेदोपस्थापनीय चारित्र है एवं पुनः दीक्षा लेते हैं, वे सातिचार-छेदोपस्थापनीयसंयत कहलाता हैं। निरतिचार-निर्दोष मुनि को आगमविधि के अनुसार छेदोपस्थापनीय चारित्र दिया जाता है, वे साधु निरतिचार छेदोपस्थापनीय-संयत कहलाते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-१. नवदीक्षित मुनि, जिन्हें सात दिन से चार मास से या छः (साढ़ा छः) मास से छेदोप-स्थापनीय चारित्र दिया जाता है।। २. केशीस्वामिवत् वे साधु जो तेईसवें तीर्थंकर के संघ से चोईसवें
तीर्थंकर के संघ में प्रवेश करते है। प्रश्न ११५. छेदोपस्थापनीय-संयतों की विशेष जानकारी दीजिए? उत्तर-ये साधु प्रथम एवं अंतिम तीर्थंकरों के शासन में ही होते हैं। इनको यह
चारित्र एकभव की अपेक्षा जघन्य एक-बार और उत्कृष्ट १२० बार तथा अनेक भवों की अपेक्षा जघन्य दो बार व उत्कृष्ट ९६० बार प्राप्त हो सकता है। ये नए बनने की अपेक्षा एक साथ उत्कृष्ट पृथक्शत एवं पूर्वपर्याय की अपेक्षा पृथक्शत (२०० से ९०० तक) करोड़ की संख्या
में पहुंच जाते हैं। इनका शेष वर्णन सामायिकसंयतों के तुल्य ही है। प्रश्न ११६. छेदोपस्थापनीय चारित्र में कितने ज्ञान पाये जाते हैं ? उत्तर-प्रथम चार ज्ञान-१. मतिज्ञान २. श्रुतज्ञान ३. अवधिज्ञान ४. मनःपर्यव
ज्ञान । प्रश्न ११७. छेदोपस्थापनीय चारित्र में कितनी लेश्याएं पाई जाती है ? उत्तर-छह लेश्याएं-१. कृष्ण लेश्या २. नील लेश्या ३. कापोत लेश्या
४. तैजस लेश्या ५. पद्म लेश्या ६. शुक्ल लेश्या। प्रश्न ११८. छेदोपस्थापनीय चारित्र में कितने समुद्घात होते हैं ? उत्तर-छह केवली का छोड़कर । प्रश्न ११६. छेदोपस्थापनीय चारित्र का साधक उत्कृष्ट कितने पूर्व का
ज्ञाता होता हैं? उत्तर-उत्कृष्ट-१४ पूर्व का। प्रश्न १२०. छेदोपस्थापनीय चारित्र का साधक आराधक होने पर कौन से
देवलोक तक जा सकता है। १. उत्तरा. २८/टि. २६
३. भगवती २५/७/५०२ २. भगवती २५/७/४६६
४. भगवती २५/७/५४२
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