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________________ साधु प्रकरण प्रश्न ६५. सामायिक चारित्र में लीन साधक आराधक होने पर कौन से देवलोक तक जा सकते हैं। उत्तर-छब्बीसवें देवलोक ।' प्रश्न ६६. सामायिक चारित्र एक भव की अपेक्षा उत्कृष्टतः कितनी बार प्राप्त हो सकता है ? उत्तर-९०० (नौ सौ) बार। प्रश्न ६७. सामायिक चारित्र अनेक भव की अपेक्षा उत्कृष्टतः कितनी बार प्राप्त हो सकता है? उत्तर-७२०० सौ बार। प्रश्न ६८. सामायिक चारित्र की एक जीव की अपेक्षा जघन्य व उत्कृष्ट . स्थिति कितनी होती है ? उत्तर-जघन्य-अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्ट (कुछ कम) करोड़ पूर्व । प्रश्न ६६. सामायिक चारित्र की अनेक जीवों की अपेक्षा स्थिति कितनी उत्तर-शाश्वत, क्योंकि महाविदेह क्षेत्र में सामायिक संयत सदा रहते हैं। प्रश्न १००. सामायिक चारित्र में गुणस्थान कितने पाते है ? उत्तर-चार–प्रमत्त संयत गुणस्थान, अप्रमत्त संयत गुणस्थान, निवृत्ति बादर गुणस्थान, अनिवृत्ति बादर गुणस्थान ।। प्रश्न १०१. सामायिक चारित्र में जीव के भेद कितने पाये जाते हैं ? उत्तर-एक-चौदहवां (संज्ञी पञ्चेन्द्रिय का पर्याप्त)। प्रश्न १०२. सामायिक चारित्र में योग कितने पाये जाते हैं? उत्तर-चौदह-कार्मण योग को छोड़कर । प्रश्न १०३. सामायिक चारित्र में उपयोग कितने पाये जाते हैं ? उत्तर-सात-प्रथम चार ज्ञान, तीन दर्शन । प्रश्न १०४. सामायिक चारित्र में भाव कितने पाये जाते हैं? उत्तर-पांच-औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक भाव।६ १. भगवती २५/७/४८१ २. २१ द्वार ३. वही ४. २१ द्वार ५. वही ६. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003051
Book TitleSadhwachar ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnishkumarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size6 MB
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