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साधु प्रकरण
कभी नहीं होते। (यदि होते हैं तो १-२-३ यावत् १६२) स्नातक दो करोड़। उत्कृष्ट यथा-पुलाक नव हजार, बकुश ४५० करोड़, प्रतिसेवना-कुशील ९०० करोड़, कषाय-कुशील सात हजार ६४० करोड़ ९९ लाख ९०
हजार १००, निर्ग्रन्थ ९०० एवं स्नातक नव करोड़। प्रश्न ८४. इन निग्रंथों में संयम की उज्ज्वलता की दृष्टि से कौन किससे
न्यूनाधिक हैं? उत्तर-पुलाक एवं कषायकुशील के संयम की जघन्य उज्ज्वलता परस्पर तुल्य एवं
सबसे कम है। पुलाक के संयम की उत्कृष्ट उज्ज्वलता उससे अनन्तगुण अधिक है। बकुश एवं प्रतिसेवनाकुशील के संयम की जघन्य-उज्ज्वलता पुलाक की उत्कृष्ट-उज्ज्वलता से अनन्तगुण अधिक एवं परस्पर तुल्य है। बंकुश, प्रतिसेवनाकुशील एवं कषायकुशील के संयम की उत्कृष्ट-उज्ज्वलता क्रमशः अनन्तगुण अधिक है। निर्ग्रन्थ-स्नातक की जघन्य-उत्कृष्ट
उज्ज्वलता परस्पर तुल्य एवं कषायकुशील से अनन्त-गुण अधिक है। प्रश्न ८५. चारित्र किसे कहते हैं ? उत्तर-चारित्र मोहनीयकर्म के क्षय, उपशम या क्षयोपशम से होने वाले विरति
परिमाण को चारित्र कहते हैं। प्रश्न ८६. चारित्र कितने प्रकार के हैं? उत्तर-चारित्र के पांच प्रकार है-(१) सामायिकचारित्र (२) छेदोपस्थापनीय
चारित्र (३) परिहारविशुद्धिचारित्र (४) सूक्ष्म-संपरायचारित्र (५)
यथाख्यातचारित्र । प्रश्न ८७. सामायिक चारित्र का तात्पर्य समझायें? उत्तर-सम अर्थात् राग-द्वेष रहित चैतन्य-परिणामों से प्रतिक्षण अपूर्व निर्जरा से
होनेवाली आत्म-विशुद्धि की प्राप्ति सामायिक-चारित्र है अथवा सम्यगज्ञान-दर्शन-चारित्र की पर्यायों- अवस्थाओं को प्राप्त कराने वाले राग-द्वेष रहित आत्मा के क्रियानुष्ठान सामायिक-चारित्र है। इसमें
सावधव्यापार का सर्वथा त्याग किया जाता है। प्रश्न ८८. सामायिकचारित्र कितने प्रकार का होता हैं? उत्तर-दो प्रकार का कहा गया हैं-इत्वरिक एवं यावत्कथिक ।२। १. (क) भगवती २५/७/४५३ २. (क) उत्तरा. २८/टि. २६ (ख) उत्तरा. २८/३२-३३
(ख) भगवती २५/७/४५४ (ग) स्थानां. ५/२/१३६
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