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पात्र आदि भण्ड उपकरण प्रकरण
१५७ हुए पात्र सुखाते हैं। इसी प्रकार कुंडे आदि वस्त्रादि धोने के उपयोग में भी
लिए जाते हैं। प्रश्न ११. वार्निश क्यों करते हैं? उत्तर-कोरे लकड़ी पात्र में चिकने पदार्थ रखने से चिकनाई काष्ठ में पैठ जाती
है, वह साफ नहीं होती। दूसरे दिन बासी होने के कारण साधु उसे काम
में नहीं ले सकते, इसलिए उस पर वार्निश आदि लगाना आवश्यक है। प्रश्न १३. रजोहरण क्या काम आता है ? उत्तर-दिन में साधु देखकर चलते हैं। रात को अंधेरे में सूक्ष्म-जीव दिखाई नहीं
देते तब पहले इससे जमीन परिमार्जन कर फिर पैर रखते हैं। प्रश्न १५. क्या दिन में अंधेरा हो, वहां भी रजोहरण परिमार्जन करते हैं? उत्तर-हां, दिन हो या रात, जहां दिखाई न दे वहां परिमार्जन कर पैर रखते हैं। प्रश्न १६. क्या यह रजोहरण साधुओं के पास होता है ? उत्तर-हां, यह प्रत्येक साधु-साध्वी के पास अनिवार्य रूप से होता है। इसके
बिना साधु ५ हाथ से अधिक दूर नहीं जा सकता। प्रश्न १८. रजोहरण जैसी एक छोटी-सी वस्तु और है, उसका क्या नाम है
और वह क्या काम आती है ? उत्तर-इसे पूंजनी या प्रमार्जनी कहते हैं। रात में हाथ, पांव पसारते समय यह __ परिमार्जन के काम में आती है। पहले इससे प्रमार्जन कर फिर हाथ पैर
आदि फैलाते हैं और बदलते हैं। प्रश्न १६. क्या रजोहरण व प्रमार्जनी का कुछ माप है? उत्तर-रजोहरण की फलियां १०० से कम तथा २०० से अधिक नहीं होनी
चाहिये तथा माप में। १२ अंगुल (२२ से. मी.) से अधिक लम्बी नहीं होनी चाहिए। प्रमार्जनी की फलियां ७२ से ज्यादा न हो तथा १२ अंगुल
से लम्बी न हो। प्रश्न २०. इसके भीतर जो लकड़ी की डंडी है उसका क्या माप है? उत्तर-रजोहरण की डांडी ३२ इंच (८० से. मी.) प्रमार्जनी १५ इंच (३७।। से. ___मी.)। प्रश्न २१. साधु रजोहरण (ओघा) क्यों रखते हैं? उत्तर-रजोहरण वास्तव में जीवदया के लिए है। रात के समय इससे पूंजकर १. मर्यादावली धर्मोप्रकरण स
३. (क) मर्यादावली धर्मोप्रकरण से २. निशीथ ५/६८ से ७८
(ख) निशीथ ५/६८-७८
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