________________
१४२
साध्वाचार के सूत्र
जितना बल होता है। १७. बलदेवलब्धि इस लब्धिवाले व्यक्ति बलदेव कहलाते हैं। इनमें दस लाख अष्टापद जितना बल होता है। १८. वासदेवलब्धि-इस लब्धिवाले बलदेव के विमातज छोटे भाई होते हैं एवं वासुदेव कहलाते हैं। इनका बल और राज्य चक्रवर्ती से आधा होता है। चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव हजारों स्त्रियों के स्वामी होते हैं। इनके पास अनेक रूप बनाने की शक्ति होती है। अतः शयन के समय प्रत्येक स्त्री के पास इनका एक-एक रूप विद्यमान रहता है-ऐसा माना गया है। १९. क्षीरमधुसर्पिरावलब्धि-इस लब्धि वाले वक्ता के वचन विशिष्ट प्रकार के दूध-मधु एवं घृत के समान श्रोताजनों के तन-मन को आनन्द देने वाले हो जाते हैं अथवा इस लब्धि से सम्पन्न योगी के पात्र में पड़ा हुआ रूखा-सूखा आहार भी दूध-मधु एवं घृतवत् स्वादिष्ट एवं पुष्टिकारक बन जाता है।
२०. कोष्ठकबुद्धिलब्धि-इस लब्धि वाले के मस्तिष्क में डाला हुआ गम्भीरज्ञान विधिपूर्वक कोठे में रखे हुए धान्य की तरह लम्बे समय तक नष्ट नहीं होता यानि उक्त लब्धिवाले स्थिरबुद्धि बन जाते हैं। २१. पदानुसारिणीलब्धि इस लब्धि से संपन्न व्यक्ति सूत्र का एक पद सुनकर उससे संबंधित अनेक पदों को अपने-आप जान लेता है। २२. बीजबुद्धिलब्धि-इस लब्धि के द्वारा बीजरूप-अर्थप्रधान एक ही पद सीखकर बहुत-सा अर्थ स्वयं जान लिया जाता है। यह लब्धि सर्वोत्कृष्ट गणधरों में पाई जाती है। वे भगवान के मुख से उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य-रूप तीनों पदों को सुनकर सम्पूर्ण-द्वादशांगी की रचना कर देते हैं।
२३. तेजोलेश्यालब्धि-इस लब्धिवाले पुरुष मुख से तीव्र तेज (अग्नि) निकाल कर अनेक योजन प्रमाण (उत्कृष्ट सोलह देश) क्षेत्र में अवस्थित वस्तुओं को क्रोधवश जला डालते हैं। गोशालक ने इसी लब्धि द्वारा भगवान के सामने दो मुनियों को भस्म किया था। भगवती श. १६ के अनुसार इस लब्धि की प्राप्ति करने वाले साधक को छह मास तक बेलेबेले पारणा एवं पारणे में मुष्ठिप्रमाण उड़द के बाकुले और एक चुल्लू पानी लेकर रहना होता है तथा निरन्तर ऊर्श्वभुज होकर सूर्य के सामने आतापना लेनी पड़ती है। यह तेजोलेश्या की साधना विधि है अनेक मुनि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org