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१९. लब्धि, प्रतिमा प्रकरण
प्रश्न १. लब्धि किसे कहते हैं? उत्तर-शुभ अध्यवसाय तथा विशिष्ट तप-संयम के आचरण से तत्तत्कर्म का क्षय
एवं क्षयोपशम होने से आत्मा में जो विशेष-शक्ति उत्पन्न होती है, उसका नाम लब्धि है। लब्धि-संपन्न मुनि लब्धिधारी कहलाते हैं। लब्धियां
अट्ठाईस मानी गई हैं। प्रश्न २. अट्ठाईस लब्धियों को संक्षेप में समझायें। उत्तर-१. आम!षधिलब्धि इस लब्धि वाले मनियों का स्पर्श औषधि का काम
करता है यानि उनके हाथ-पैर आदि का स्पर्श होते ही रोगी नीरोग बन जाता है। २. विप्रुडौषधिलब्धि-विपुड् का अर्थ मल-मूत्र है। इस लब्धि वाले मुनि के मल-मूत्र औषधि के समान रोग को शांत करने में समर्थ हो जाते हैं। ३. खेलौषधिलब्धि-इस लब्धिवाले योगी का खेल-श्लेष्म रोग को शांत करता है।
४. जल्लौषधिलब्धि-इस लब्धिवाले साधु से जल्ल अर्थात् कान-मुखजिह्वा आदि का मैल रोगों का नाश करता है। ५. सर्वौषधिलब्धि इस लब्धि वाले महात्मा के मल-मूत्र-नख और केश आदि सभी चीजें औषधि का रूप धारण कर लेती हैं एवं स्पर्श मात्र से रोगों को नष्ट करने लगती हैं। ६. संभिन्नश्रोतोलब्धि इस लब्धि से सम्पन्न योगी शरीर के प्रत्येक अवयव से सुनने लगते हैं अथवा एक इन्द्रिय का काम दूसरी इन्द्रिय से करने लगते हैं (जैसे-कानों से देखना, आंखों से सुनना, नाक से स्वाद
लेना आदि-आदि) अथवा बारह योजन में फैली हुई चक्रवर्ती की सेना में १. (क) प्रवचनसारोद्धार २७० द्वार गाथा (ख) स्थानांग वृत्ति प. १५१५
१४६२ से १५०५
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