SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४ महाप्रज्ञ-दर्शन प्रवाह क्यों हैं ? हैं या नहीं हैं ? अभी यह विज्ञान का विषय ही नहीं बना है। जब जब रसायन बदलते हैं, जब जब विद्युत् की धारा का संतुलन बिगड़ता है, तब तब शरीर में परिवर्तन आ जाता है। एक आदमी को चौबीस घंटों एक जैसा नहीं पाया जा सकता, न मानसिक दृष्टि से, न शारीरिक दृष्टि से। शरीर में अनगिनत रसायन हैं। अनेक वैज्ञानिकों ने खोजने के बाद बताया कि व्यक्ति जो सोचता है, चिन्तन करता है, उसके रसायन सारे शरीर में जमा हो जाते हैं। हमारे एक बाल में सैकड़ों प्रकार के रसायन हैं। सिर के एक बाल में वे सारे रसायन हैं, जो व्यक्तित्व को अभिव्यक्ति देते हैं। सारा शरीर रसायनों से भरा पड़ा है। दस, बीस या पचास दिन की शरीर प्रेक्षा से उन सब रसायनों को नहीं जाना जा सकता। निरन्तर प्रेक्षा करने से ही उनसे परिचित हो सकते हैं। ___ सारा जीवन है नाड़ी संस्थान या तंत्रिका तंत्र में। सारा जीवन है ग्रंथि में। हमें मेरुदण्ड, मस्तिष्क और ग्रंथि तंत्र इन तीनों पर नियंत्रण पाना है। मस्तिष्क पर नियंत्रण होगा, तो संवेदनों पर अपने आप नियंत्रण हो जाएगा। मेरुदण्ड पर नियंत्रण होगा, तो संवेग या कषाय पर नियंत्रण हो जाएगा। कषाय पर नियंत्रण करने वाला मस्तिष्क नहीं है। पृष्ठरज्जू के निचले सिरे से मस्तिष्क तक का स्थान चैतन्य का मूल केन्द्र है। आत्मा की अभिव्यक्ति का यही स्थान है। यही चित्त का स्थान है। यही मन का और इन्द्रियों का स्थान है। संवेदन, प्रतिसंवेदन, ज्ञान सारे यहीं से प्रसारित होते हैं, शक्ति का यही स्थान है। ज्ञानवाही और क्रियावाही तंतुओं का यही केन्द्र-स्थान है। __ ऊर्जा के नीचे जाने से पौद्गलिक सुख की अनुभूति होती है। ऊर्जा के ऊपर जाने से अध्यात्म सुख की अनुभूति होती है। नाड़ी-संस्थान जितना मनुष्य का शक्तिशाली है, उतना किसी भी प्राणी का शक्तिशाली नहीं है। जितने प्राणी हैं, उनमें सबसे अधिक शक्तिशाली नाड़ी-संस्थान मनुष्य को मिला है। पशु का नाड़ी-संस्थान उतना कार्यक्षम नहीं है, शक्तिशाली नहीं है। कहा जाता है, देवता भी मनुष्य होना चाहते हैं। मनुष्य होकर साधना करना चाहते हैं। मनुष्य के नाड़ी-संस्थान में दोनों विशेष प्रकार की शक्तियां हैं। ज्ञान की भी शक्ति है और कार्य की भी शक्ति है। उसके ज्ञानवाही तंतु इतने शक्तिशाली हैं कि वह बड़ा ज्ञान उपलब्ध कर सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy