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महाप्रज्ञ उवाच
- एक दृष्टि से शरीर आत्मा है। जब तक उसमें प्राण शक्ति का संचार है, तब तक हम शरीर को अनात्मा नहीं कह सकते । अंगुली इसलिए हिलती है कि वह आत्मा है। क्या शरीर का कोई ऐसा प्रदेश है, जहां आत्मा न हो? क्या शरीर का एक भी ऐसा परमाणु है जो आत्मा से भावित न हो? आत्मा है, इसलिए आदमी खा रहा है, बोल रहा है, श्वास का स्पंदन हो रहा है। आत्मा के चले जाने पर आदमी न खा सकता है, न बोल सकता है, और न श्वास ले सकता है। श्वास आत्मा है, भाषा आत्मा है, आहार आत्मा है और शरीर आत्मा है। आहार एक पर्याप्ति भी है और प्राण-शक्ति भी है। शरीर एक पर्याप्ति भी है और प्राण-शक्ति भी है। भाषा एक पर्याप्ति है, तो एक प्राण-शक्ति भी है। मन एक पौद्गलिक शक्ति है, तो वह एक प्राण-शक्ति भी है। हम शरीर और आत्मा को बांट नहीं सकते।
श्वास बांए नथुने से आता है, दांए नथुने से आता है, दोनों नथुनों से आता है, क्यों आता है और क्या परिणाम होते हैं, कोई डाक्टर नहीं बता सकता। परिणाम निश्चित है कि बांए से आप श्वास लें, शरीर में ठंडक व्याप्त हो जाती है, दांए से श्वास लें, शरीर में गर्मी व्याप्त हो जाएगी। दोनों से श्वास लें, सुषुम्ना चले, आपका चित्त शांत हो जाएगा, विकल्प शांत हो जायेंगे। क्यों होता है ऐसा, कोई भी शल्य-चिकित्सक या फिजिशियन इसकी व्याख्या नहीं दे सकता। अध्यात्म का मर्मज्ञ इसकी व्याख्या दे सकता है।
हृदय में प्राण का एक प्रकार का प्रवाह है, नासाग्र में प्राण का एक प्रकार का प्रवाह है, नाभि में प्राण का एक प्रकार का प्रवाह है, गुदामूल में प्राण का एक प्रकार का प्रवाह है और हमारी समूची त्वचा में प्राण का एक प्रकार का प्रवाह है। प्राण में कई प्रवाह हैं। कोई भी डाक्टर नहीं जानता कि ये प्राण के
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