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रूपान्तरणप्रक्रियाधिकरणे मनःपादः ० चेतनापरिष्कारोऽशान्तिहेतुः
अशान्ति का कारण है-चेतना का अपरिष्कृत होना। ० अमनस्के केवलं प्रकाशः
मानसिक विकास की अन्तिम भूमिका है अमनस्क योग की भूमिका । यहाँ मन समाप्त हो जाता है। व्यक्ति वहाँ पहुँच जाता है जहां कोई विचार नहीं, कल्पना नहीं। केवल प्रकाश और केवल चेतना। ० . ततः समाधिः ० ध्यानं सेन्द्रियं समनस्क बहिर्मुखं सविषयञ्च
समाधिः तद्विपरीतः ध्यान और समाधि में अन्तर:ध्यान-सेन्द्रिय और समनस्क चित्त दशा समाधि-अनिन्द्रिय और अमनस्क चित्त दशा ध्यान में बाहरी जागरूकता भी होती हैं। समाधि में केवल आन्तरिक जागरूकता । ध्यान में शब्द आदि विषयों का बोध होता है। समाधि में भीतरी शब्द आदि विषय भी निरुद्ध हो जाते हैं।
सबीजः समाधिः साधनम् ० निर्बीजः साध्यः
समाधि साधन भी है और समाधि साध्य भी है। जब समाधि बीज रूप में होती है, तब वह साधन होती है और जब वह प्रस्फुटित होती है, समाधि साध्य बन जाती है। ० ततः केवलं ज्ञानम् ० ततः निर्विकल्पचेतना
समाधि का पहला बिंदु है केवल ज्ञान, केवल दर्शन और अन्तिम बिंदु है निर्विकल्प चेतना। ० ततोऽहिंसादयः
राग-द्वेष मुक्त चेतना का क्षण ही अहिंसा का, सत्य, अचौर्य आदि का क्षण है। ० शैलेशी तरङ्गातीतावस्था
हम यह कल्पना न करें कि दो-चार घंटे की ध्यान की स्थिति से तरंगातीत अवस्था प्राप्त होती है। व्यक्ति शैलेशी अवस्था को प्राप्त होता है तब उसे तरंगातीत अवस्था प्राप्त होती है।
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