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________________ ३१६ महाप्रज्ञ-दर्शन विज्ञान की भाषा ऊर्जा की ऊर्ध्व यात्रा किये बिना स्वतःचालित नाड़ी संस्थान के साथ सम्पर्क स्थापित किये बिना विश्वमैत्री और सामाजिक संतुलन की स्थापना नहीं की जा सकती। अध्यात्म की भाषा अच्छे भावों का विकास किये बिना भय और चिंता को नहीं मिटाया जा सकता। विज्ञान की भाषा प्रकाश वाले रंगों का ध्यान किये बिना भय और चिंता को नहीं मिटाया जा सकता। ० व्यवहारः कायिकः ० विचारो मानसिकः ० भावाः लेश्यगताः __ हमारे व्यक्तित्व के तीन पहलू हैं-भाव, विचार और व्यवहार । व्यवहार हमारी कायिक प्रवृत्ति है, कायिक आचरण है। विचार हमारी मानसिक प्रवृत्ति है। ये दोनों स्नायुओं से सम्बन्धित हैं। मन भी स्नायविक प्रवृत्ति है और व्यवहार भी स्नायविक प्रवृत्ति है। भाव स्नायविक प्रवृत्ति नहीं है-वह लेश्या केन्द्र से होने वाली क्रिया है। ० आवरणं न रूपान्तरणम् ___व्यक्तित्व का आवरण और व्यक्तित्व का रूपान्तरण-ये दो बातें हैं। व्यक्तित्व पर आवरण तो जब चाहें तब डाला जा सकता है। जो व्यक्ति जैसा है-वैसा कम दिखना चाहता है। वह बहुत बार अपने व्यक्तित्व पर आवरण डाले रहता है, जिससे कि दूसरा उसे पहचान न सके, उसके असली रूप को जान न सके। ० सापेक्षतया शान्तिः सापेक्षता से मन की शांति को बल मिलता है। एकांगी दृष्टिकोण से अशांति निष्पन्न होती है। ० सामञ्जस्य-समन्वय-व्यवस्था-सहिष्णुता-विनय-वात्सल्यैः शान्तिसम्भूतिः सामंजस्य, समझौता, व्यवस्था, सहिष्णुता, विनय और वात्सल्य-इन पांच बातों पर मनन करें तो हम अपने लक्ष्य तक पहुंच पायेंगे, पारिवारिक शान्ति की बात सधेगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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