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________________ रूपान्तरणप्रक्रियाधिकरणे मनःपादः ३०७ है। पीड़ा की तीव्रता और मन्दता विकल्प के आधार पर होती है। जिस प्रकार की विकल्पना होती है, उसी प्रकार की अनुभूति होने लगती है। ० यद् बुभूषति तन्मयं भवेत् जो कुछ होना चाहता है-उस चित्त का निर्माण करे। जो स्वस्थ होना चाहता है-वह स्वस्थ चित्त का निर्माण करे। जो ब्रह्मचर्य की साधना करना चाहता है वह ब्रह्मचर्य चित्त का निर्माण करे। (प्रक्रिया)-ऐसा चित्त बनाना जिसमें हमारा ध्येय साकार हो। शरीर को शून्य कर, कल्पना को साकार कर प्राणायाम करे। भावी चित्त की निर्मलता के लिए, उसके साथ संबंध स्थापित करने के लिए रेचक और बाह्य कुंभक महत्त्वपूर्ण कड़ियां हैं। ० ध्येयतादात्म्ये तद्गुणसङ्क्रमणम् अपने ध्येय के स्वरूप में आविष्ट हो जाने से गुण संक्रमण होता है। अपने शरीर को शन्य बनाकर ध्येय में घुसना शुरू कर दिया। घुसते-घुसते इतने घुस गये कि ध्येय और ध्याता दोनों एक बन गए। यह गुण संक्रमण का सिद्धांत है। मूर्छा को तोड़ने का एकमात्र उपाय है-शुद्ध चेतना का अनुभव । ० प्रतिपक्षभावनया स्वभावपरिवर्तनम् स्वभाव परिवर्तन का अमोघ उपाय है प्रतिपक्ष भावना। ० शुभविचारे शुभपुद्गलग्रहणम् यदि आप प्रसन्नता, मैत्री आदि अच्छी बातों का चिन्तन करते हैं तो अनायास ऐसे इष्ट पुद्गलों का ग्रहण होगा कि मन अच्छा बनने लग जायेगा और चित्त निर्मल होने लगेगा। ० अन्यत्व-एकत्व-अनित्यत्वानुप्रेक्षाभिः शरीर-समाज-पदार्थमूर्छानाशः मन पर जमने वाले मलों को दूर करने के लिए हमें अनुप्रेक्षा का अभ्यास करना चाहिए। तीन अनुप्रेक्षाएं हैं-अन्यत्व, एकत्व और अनित्य । जब अन्यत्व अनुप्रेक्षा का अभ्यास होता है तब शरीर के प्रति होने वाली मुर्छा नहीं पनपती. मैल नहीं जमता। एकत्व अनुप्रेक्षा से सामाजिक संबंधों में आने वाली मूर्छा कम हो जाती है। अनित्य अनुप्रेक्षा के अभ्यास से पदार्थ के प्रति होने वाली मूर्छा नष्ट हो जाती है। ० वैराग्येण चित्तशुद्धिः वैराग्य भावना चित्त शुद्धि का प्रमुख साधन है। स्पष्टकल्पनया रूपान्तरणम् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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