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रूपान्तरणप्रक्रियाधिकरणे मनःपादः ० आत्मानं विद्धीति प्रथमाधिशान्तिः ० कृतकर्मफलाङ्गीकार इति द्वितीया ० सत्यस्वीकृतिरिति तृतीया
मानसिक स्वास्थ्य का पहला सूत्र है-अपने आपको जानो।
दूसरा सूत्र है-परिणामों की स्वीकृति | हम प्रवृत्ति करते हैं किंतु उसके परिणामों को स्वीकार नहीं करते और इसलिए मन में असंतोष और अशांति पैदा होती है।
तीसरा सूत्र है-सत्य के प्रति समर्पण। सत्य का अर्थ है-सार्वभौम नियम । मृत्यु एक सार्वभौम नियम है। वस्तु स्वभाव एक सच्चाई है। सार्वभौम सच्चाइयों के प्रति जो समर्पित रहता है, वह मानसिक दृष्टि से स्वस्थ रह सकता है। ० आत्मदर्शनं परमात्मदर्शनम्
समाधान है-स्व-दर्शन (स्वदर्शन का परिणाम होता है-परमात्मा दर्शन
का)।
० जिह्वा-कण्ठ-शिथिलीकरणं मनश्शान्त्युपायः
मन को शांत करने के लिए शरीर के दो अवयव बहुत महत्त्वपूर्ण हैं-जीभ और स्वरयंत्र । जीभ का कायोत्सर्ग और कंठ का कायोत्सर्ग बहुत ही महत्त्वपूर्ण साधन है।
तपस्या, तेजस्विता, उग्रता-ये मन के उत्तरायण हैं। जड़ता और नींद की शांति यह हमारे मन का दक्षिणायन है।
० आत्मलीनता कष्टसहिष्णुता
भगवान महावीर के साधना काल में अनेक कष्ट उपस्थित हुए। वे कष्टलीन होते तो उन्हें कभी नहीं झेल पाते किंतु वे आत्मलीन थे, इसलिए उन्हें झेल सके। ० तपसा वृत्तिशोधनम् ० शुभसंस्कारपोषणञ्च
वृत्तियों का शोधन तपोयोग से होता है। जैसे पानी, हवा और धूप के अभाव में अंकुरित बीज मुरझा जाता है वैसे ही पोषक सामग्री के अभाव में अर्जित संस्कार निर्वीर्य बन जाते हैं। जैसे गंदा जल शोधक द्रव्यों के प्रयोग से स्वच्छ हो जाता है वैसे ही तपोयोग के द्वारा वृत्तियों के दोष विलीन हो जाते
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