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८. सत्य द्वंद्वात्मक है। ६. एक वक्तव्य या तो सत्य होता है ६.
या असत्य ।
१. वर्तमान शिक्षा सर्वोत्तम है।
१. वर्तमान शिक्षा से बौद्धिक विकास अवश्य होता है किन्तु भावनाएं परिष्कृत नहीं होतीं ।
२. अध्ययन द्वारा व्यक्तित्व का निर्माण २. व्यक्तित्व के निर्माण के लिए कुछ किया जा सकता है । प्रयोगों का अभ्यास करना भी आवश्यक है । ये प्रयोग ही योग कहलाते हैं।
३. शिक्षा की सार्थकता इसमें है कि ३. शिक्षा को एक ऐसा लक्ष्य भी प्रदान आजीविका जुटा दे। करना होता है जिसके प्रति विद्यार्थी अपने आप को समर्पित कर सके । ४. ध्यान लौकिक सफलता के लिए भी महत्त्वपूर्ण है।
४. ध्यान उनके लिए है जो मुमुक्षु हैं ।
५. तटस्थ भाव के बिना हम लौकिक समस्याओं का भी ठीक समाधान नहीं खोज पाते ।
५. वीतरागता अध्यात्म का मार्ग है ।
शिक्षा
६. सङ्कल्प करने से सफलता मिल जायेगी ।
महाप्रज्ञ-दर्शन
८. एक द्वंद्वातीत सत्य भी है। कोई भी वक्तव्य सम्यक् परिप्रेक्ष्य में सत्य होता है और मिथ्या परिप्रेक्ष्य में असत्य ।
७. रोग की जड़ शरीर में है । प्रवृत्ति और निवृत्ति में विरोध है ।
८.
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६. सङ्कल्प से सफलता तभी मिलती है जब वह सङ्कल्प गहराई में उस अवचेतन मन तक पहुंचा हुआ हो जिस अवचेतन मन तक वह आदत पहुंची हुई है जिसे हम बदलना चाहते हैं।
७. रोग की जड़ मनोभावों में है।
८.
कोरी प्रवृत्ति विक्षिप्तता उत्पन्न करती है। कोरी निवृत्ति निकम्मापन लाती है। दोनों में सामञ्जस्य चाहिए ।
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