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रूपान्तरणप्रक्रियाधिकरणे मनःपादः
० रागद्वेषयुक्तं मनः इत्येकम् ० रागद्वेषरहितं मनः-इति द्वितीयम् ० अमनः-इति तृतीयम्
मन की तीन अवस्थाएं हैं-राग-द्वेष युक्त मन, राग-द्वेष शून्य मन, अमन। ० अशान्तं, शान्तं, समाहितञ्चेति मनसस्तिस्रोऽवस्थाः
मन की तीन अवस्थाएं हैं-अशांत, शांत अवस्था और समाधि अवस्था । ० सति मस्तिष्के मनः ० अध्यवसायस्तु, सर्वेषाम्
__ मन की क्रिया का संचालन मस्तिष्क के द्वारा होता है, इसलिए वह यान्त्रिक क्रिया है। जिसके सुषुम्ना है, मस्तिष्क है, उसमें मन होता है। सब जीवों में मन नहीं होता, किंतु अध्यवसाय सब जीवों में होता है। एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय जीवों तक सब जीवों में अध्यवसाय होते हैं, किंतु मन सबमें नहीं होता। ० उत्तरोत्तरं हस्वत्वं चैतन्य-चित्त-मानसाम् ० चित्तं स्थायि मनोऽस्थायि ० चैतन्यैकाग्रता कषायं प्रति ० चित्तैकाग्रता निर्णय प्रति ० मन एकाग्रता सङ्कल्प-विकल्प-निरोधं प्रति
___ चैतन्य, चित्त और मन तीनों भिन्न हैं। चैतन्य व्यापक है, चित्त उससे छोटा और मन उससे छोटा। चित्त (बुद्धि) स्थायी तत्व है। मन उत्पन्न-नष्ट होता है।
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