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परिभाषाधिकरणे अहिंसापादः
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० इच्छाकेन्द्रं मनः ० मनःकेन्द्रं स्वातन्त्र्यम्
सारी इच्छाओं का केन्द्र मन है और मन की इच्छा का केन्द्र है स्वतंत्रता। ० मानवीया प्रजा ० विस्तरवादी राजा
जनशक्ति हमेशा मानवता का समर्थन करती है। किंतु राज-शक्ति का ध्यान हमेशा विस्तार और प्रसार की ओर केन्द्रित रहता है। ० अहिंसा-अपरिग्रह-सत्यानि सापेक्षताजन्यानि
सपेक्षता को न जानने वाला शान्ति का मर्म जान ही नहीं पाता । अहिंसा, अपरिग्रह और सच्चाई-ये सब सापेक्षता के ही परिणाम हैं।
।। इति परिभाषाधिकरणे अहिंसापादः ।।
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