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दृष्टि १५. हमारा अस्तित्व हमारे शरीर तक १५. हमारा आभामण्डल हमारे शरीर के सीमित है।
बाहर तक फैला है। वह आभामण्डल भी हमारे अस्तित्व का हिस्सा ही है और वह आभामण्डल
शरीर से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है। १६. हम सबका अस्तित्व अलग-अलग १६. मुक्त आत्माओं को छोड़कर हम __ है। हम स्वयं में पर-निरपेक्ष रूप सब एक दूसरे से प्रभावित होते
में स्थित हैं। १७. श्रद्धा वह है, जहाँ तर्क नहीं है। १७. श्रद्धा वह है जो हमें दूसरों की
अच्छाई के प्रति ग्रहणशील बनाती
१८.धर्म अंध-विश्वासों पर टिका है। १८.धर्म हमारे उन अंध-विश्वासों पर
चोट करता है जिन्हें हम सहज ही
सदा पाले रहते हैं। १६. पृथ्वी, जल, अग्नि एवं वायु जड़ १६. पृथ्वी, जल, अग्नि एवं वायु सजीव __ है। इन्हें सुख-दुःख नहीं होता। है, इन्हें भी सुख-दुःख होता है। २०.हमें दूसरों के सुख-दुःख से कोई २०.दूसरों के प्रति क्रूरता का भाव हमें
प्रयोजन नहीं । हमें अपना ही सुख कठोर बना देता है और हमारी साधना है।
ग्रहण-शीलता समाप्त हो जाती है। ऐसी स्थिति में न हमें दूसरों के सद्भाव का लाभ मिलता है, न
आशीर्वाद का। २१.जो जितना स्थूल है वह उतना २१. जो जितना सूक्ष्म है वह उतना शक्तिशाली है।
अधिक शक्तिशाली है। २२.चेतन और जड़ एक दूसरे को २२.चेतन और जड़ एक दूसरे से प्रभावित नहीं करते।
प्रभावित होते हैं। २३. पौष्टिक भोजन से शरीर पुष्ट होता २३. केवल भोजन ही हमारे शरीर को
नहीं बनाता। हमारे शरीर के निर्माण में वह मनःस्थिति भी महत्त्वपूर्ण योगदान देती है जिस मनःस्थिति
से हम भोजन करते हैं। २४. एक-सी परिस्थिति में सबको २४.एक-सी परिस्थिति होने पर भी एक-सा-ही अनुभव होगा।
सबके अनुभव भिन्न-भिन्न होते हैं।
है।
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