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शिक्षा का नया आयाम
२११ ऐसा संभव नहीं है कि जहाँ तक जीवन में मेरे पिता पहंचे थे मैं अपना जीवन उससे भी आगे प्रारम्भ कर दूं। इसलिए हर एक को अपना जीवन अपने ढंग से जीना होता है यही जीवन की विविधता है सरसता है। जीवन यांत्रिक नहीं हो सकता।
__ मनुष्य अतीत से सीखता है भविष्य की योजना बनाता है इससे उसकी दृष्टि में व्यापकता आती है। दृष्टि की इस व्यापकता का नाम ही नैतिकता है। नैतिकता ऊपर से लादे गये आदेशों का पुलन्दा नहीं है। मनुष्य ने अपने अतीत के अनुभव से यह जाना है कि वह पशुओं से गुणात्मक रूप से भिन्न है। इसलिए जंगल के नियम उस पर लागू नहीं होते। वह समाज बनाकर रहने में इसीलिए समर्थ हुआ है कि वह स्वार्थ से ऊपर उठ सकता है; केवल दूसरों के लिए त्याग कर ही नहीं सकता अपितु दूसरों के लिए बलिदान होने में सुख का अनुभव भी कर सकता है। जब तक मनुष्य इस मूलभूत बात को नहीं समझेगा तब तक उसकी दिङ्मूढ़ता दूर नहीं हो सकती।
शिक्षा का काम केवल उन शाश्वत सत्यों को उजागर करना ही नहीं है जिनका साक्षात्कार प्रज्ञावान पुरुषों ने किया है अपितु अपने अनुभवों से वर्तमान संदर्भ में उन मूल्यों की प्रासंगिता का विश्लेषण करना भी है। मूल्य शाश्वत है किंतु उनका विनियोग शाश्वत नहीं है। शिक्षा हमें बताती है कि शाश्वत मूल्यों का विनियोग वर्तमान परिस्थितियों में किस प्रकार किया जाए। ___ऊपर हमने धर्म दर्शन का महत्त्व बताया; विज्ञान की अपूर्णता की ओर भी इंगित किया किंतु उसका यह अर्थ न माना जाए कि विज्ञान अनुपयोगी है। पदार्थ जगत् में विज्ञान की खोजों का महत्त्व असंदिग्ध है। विज्ञान की खोजों ने एक महत्त्वपूर्ण कार्य यह किया कि हमें स्थूल से सूक्ष्म की ओर बढ़ने में सहायता दी। विज्ञान अपने आप में भले ही मूल्यों के प्रति तटस्थ रहा किंतु वैज्ञानिक भी मूल्यों के प्रति तटस्थ रहे यह आवश्यक नहीं है। जिन वैज्ञानिकों ने विज्ञान के माध्यम से उद्घाटित होने वाले रहस्यों पर विचार किया उन्होंने मनुष्य जाति को मूल्यवान् विचार भी दिए । धर्म दर्शन तो पहले ही स्थूल की अपेक्षा सूक्ष्म को महत्व देता था किंतु विज्ञान भी जैसे-जैसे प्रगति करता गया वह सुक्ष्म-केन्द्रित हो गया। परिणाम यह हुआ कि विज्ञान और अध्यात्म एक दूसरे के बहुत निकट आ गए।
हमने ऊपर अस्तित्व और जीवन के भेद की जो चर्चा की है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि भले ही समस्त अस्तित्व जीवन न जी रहा हो किंतु जो जीवन जी रहा है उसका भी अस्तित्व तो है ही। इसलिए विज्ञान ने जब अस्तित्व की सुरक्षा और सुविधा के उपाय जुटाये तो उसने एक प्रकार से
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