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सापेक्षता और अनेकांत : विज्ञान और दर्शन
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इसका यह अर्थ होता है कि समय के न्यूनाधिक होने का तथ्य वास्तविक है, दृष्टि का भ्रम नहीं है ।
द्रव्यमान की वृद्धि
यदि कोई पदार्थ प्रति सेकेण्ड १०० फुट गति से चल रहा है और उसे १०१ फुट प्रति सेकेण्ड की गति से चलाना चाहें तो इसके लिए जितनी अतिरिक्त ऊर्जा लगानी पड़ेगी - ८००० फुट प्रति सेकेण्ड से चलने वाले पदार्थ की गति ८००१ फुट प्रति सेकेण्ड करने के लिए भी उतनी ही ऊर्जा लगनी चाहिए। किंतु ऐसा होता नहीं है। क्योंकि अधिक तेज चलने वाले पदार्थ में अधिक गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy ) आ जाती है, मानो उस पदार्थ का द्रव्यमान बढ़ जाता है। परापरमाणु स्तर पर यह स्थिति वस्तुतः बन जाती है कि जब कण प्रकाश की गति जैसी तीव्र गति से चलते हैं तो उनका द्रव्यमान सचमुच बढ़ जाता है। इस तथ्य का पता हमें इस बात से चला कि परापारमाणविक कण (Sub-Atomic-Particles) भिन्न-भिन्न गतियों से चलते हैं और उनकी गतियों के अन्तर से उनके द्रव्यमान में भी अन्तर आ जाता है।
काल की सापेक्षता
आईंस्टीन ने एक प्रयोग मानसिक रूप से किया। कल्पना करें कि एक कमरा शीशे का बना हुआ है जिसके ठीक बीचो-बीच बिजली का लट्टु लगा है और वह कमरा चल रहा है। एक व्यक्ति उस कमरे के बाहर है। बिजली का लट्टु रुक-रुक कर जलता है। जब वह जलता है तो कमरे के भीतर वाले व्यक्ति को वह प्रकाश कमरे की चारों दीवारों तक एक साथ पहुँचता हुआ दिखाई देता है । अब यदि वह कमरा प्रकाश जैसी तीव्र गति से चलने लगे तो बाहर वाले व्यक्ति को गति की विपरीत दिशा में बनी हुई अर्थात् पिछली दीवार पर प्रकाश पहले पहुँचता हुआ दिखाई देगा और गति की दिशा में बनी हुई अर्थात् अगली दीवार पर वह प्रकाश बाद में पहुँचता हुआ दिखाई देगा । जो एक के लिए पूर्वापर है - वह दूसरे के लिए युगपत् है । इसका यह अर्थ हुआ कि विश्व में निरपेक्ष रूप में पहले, पीछे और एक साथ होने का कोई अर्थ नहीं है- क्योंकि ये सब दर्शक - सापेक्ष हैं ।
आईंस्टीन ने इस आधार पर एक नया सिद्धान्त बनाया कि देश और काल पृथक्-पृथक् नहीं हैं। अपितु दोनों मिलकर एक चतुः आयामी तत्व हैं । न्यूटन यह मान रहा था कि देश में लम्बाई-चौड़ाई और मोटाई ये तीन आयाम हैं- जो हर स्थूल पदार्थ में रहते हैं - और एक समय का चौथा आयाम है जिसमें ये तीन आयाम वाले पदार्थ परिणत होते रहते हैं। न्यूटन के
अनुसार
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