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महाप्रज्ञ-दर्शन ३. जैसे-जैसे गति तीव्र होती है, समय की गति मंद होती है और प्रकाश की ____ गति पर समय की गति सर्वथा रुक जाती है।
उपर्युक्त तीनों मान्यताएं उस दर्शक की दृष्टि से कही गयी है जो स्वयं स्थिर है और जिसकी अपेक्षा पदार्थ गति करता है किंतु यदि दर्शक स्वयं भी पदार्थ के साथ गति करता हो तो उसके लिए समय, माप अथवा द्रव्यमान घटते-बढ़ते नहीं हैं, अपितु उतने ही रहते हैं। दूसरी बात ध्यान में देने की यह है कि उपर्युक्त मान्यताएं स्थूल स्तर पर दृष्टिगोचर नहीं होती। इन तथ्यों का प्रत्यक्षीकरण वहीं होता है जहां पदार्थ प्रकाश की गति से थोड़ी बहुत ही कम तीव्र गति से चल रहे हों। प्रकाश की गति की निरपेक्षता
आईन्सटीन के सामने दो ऐसे तथ्य थे जिसके कारण वे उपर्युक्त तथ्यों तक सापेक्षतावाद के सिद्धान्त के आधार पर पहुँच सके१. यह स्पष्ट नहीं हो रहा है कि यह कहने का क्या अर्थ है कि अमुक पदार्थ
चलता है और अमुक पदार्थ नहीं चलता है। चलते हुए जहाज में यदि एक व्यक्ति दूसरे कुर्सी पर बैठे व्यक्ति के पास चलकर जा रहा हो तो कुर्सी पर बैठे व्यक्ति के लिए वह व्यक्ति चल रहा है और वह स्वयं कुर्सी में बैठा हुआ स्थिर है, किंतु जहाज से बाहर खड़े हुए व्यक्ति के लिए दोनों ही चल रहे हैं। इससे भी आगे जायें तो स्वयं पृथ्वी केवल अपने कक्ष के ही चारों
ओर एक सेकेण्ड में १८ मील की गति से घूम रही है। स्वयं सूर्य भी गैलेक्सी के चारों ओर घूम रहा है। और स्वयं गैलेक्सी भी दूसरी गैलेक्सी के चारों ओर घूम रही है। इस प्रकार विश्व में कुछ भी पूर्णतः स्थिर नहीं है। अतः हम केवल एक की अपेक्षा दूसरे को स्थिर कह सकते हैं। इस बात का पता आईंस्टीन से तीन सौ वर्ष पहले गैलेलियो लगा चुका
था-और इस बात को समझने में कोई कठिनाई भी नहीं है। २. आईंस्टीन के सामने गति संबंधी नयी बात आयी वह यह कि प्रकाश की गति सभी स्थितियों में समान रहती है।
प्रकाश की गति की समानता का अर्थ समझना होगा ताकि हम उससे उत्पन्न होने वाली विचित्र स्थिति को समझ सकें । कल्पना करें कि१. हम एक स्थान पर खड़े हैं और दूसरे स्थान पर एक बल्ब जल रहा है तो
स्पष्ट है कि प्रकाश हम तक १८६००० मील प्रति सेकेण्ड की गति से
आयेगा। यहां तक कोई समस्या नहीं है। २. हम जिस ओर से प्रकाश आ रहा है-उसी ओर १,००,००० मील प्रति
सेकेण्ड की गति से चलें तो ऐसी स्थिति में प्रकाश की गति
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