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महाप्रज्ञ उवाच
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करता है, संग्रही और परिग्रही बन जाता है। वह अपने आस-पास की ओर ध्यान ही नहीं देता । यह स्थिति ही क्रांति को जन्म देती है 1
पूरे समाज की न्यूनतम आवश्यकताएं पूरी हो जाएं। रोटी, कपड़ा और मकान, दवा और शिक्षा के साधन प्रत्येक व्यक्ति को सुलभ हो जाएं। आर्थिक समानता की बात छोड़ दें। सब व्यक्तियों का कमाने का अलग-अलग ढंग होता है, व्यावसायिक कौशल होता है। कोई अधिक कमाता है, कोई कम । आर्थिक समानता का यंत्रीकरण नहीं हो सकता । सब लखपति हों, यह कभी संभव नहीं है। इतना हो सकता है - जीवन की प्रारंभिक और मौलिक आवश्यकताएं सबको समान रूप से मिले। अपनी-अपनी विशेष योग्यता से व्यक्ति लाभ कमाए, उसमें दूसरों को आपत्ति न हो ।
आर्थिक विकास पर बहुत बल दिया गया। अधिक उत्पादन, अधिक आय और समान वितरण पर - उन पर बहुत ध्यान दिया गया, किंतु उनके साथ दो बातों को जोड़ना चाहिए था - आर्थिक संयम और इच्छा का संयम ।
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