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अहिंसा
१६७ _ मृत्यु बड़ी पीड़ा है किंतु पशुओं को इससे भी बड़ी पीड़ा भोगनी पड़ती है। चिकित्सा के नाम पर पशुओं पर जो प्रयोग किए जाते हैं उनमें एकदम मारा नहीं जाता है प्रत्युत तड़पा-तड़पाकर मारा जाता है। उन्हें बिना बेहोश किए उनके शरीर को चीरा फाड़ा जाता है, अंग भंग किया जाता है और तरह-तरह की वेदना दी जाती है। अकेले अमेरिका में प्रतिवर्ष ४५,०००,००० रोडन्ट्स, ७०,०००० खरगोश, २,००,००० बिल्लियाँ, ५,००,००० कुत्ते, ४६,००० सूअर, २५,००० भेड़ें, १७,२५,००० पक्षी, २०,०००,००० मेंढ़क १६०,००० कछुए, ६१०० सर्प और ५१००० छिपकलियां तड़पा-तड़पा कर मारी जाती हैं।
ये प्रयोग केवल मनुष्यों के लिए ही नहीं, वनस्पतियों पर छिड़के जाने वाली कीटाणुनाशकों के आविष्कार के लिए भी किये जा रहे हैं।
अमेरिका और इंगलैण्ड में १५,०००,००० शिकारी हैं। शिकार अथवा मनोरंजन के लिए केवल अमेरिका में १७५,०००,००० पशु मारे जाते हैं। पशुओं को फंसाने के लिए जो उपकरण प्रयोग में लाए जाते हैं वे इतने वेदना जनक हैं कि उन उपकरणों से छुटकारा पाने के लिए पशु अपने ही दांतों से उपकरण में फंसे हुए अपने ही पंजों को काट डालता है। ऐसे पशुओं में अधिकतर वे मादा पशु होते हैं जिन्हें अपने बच्चों के लिए इसलिए मर जाने की आशंका होती है कि वे उन्हें दूध नहीं पिला पाएंगे। फर के लिए मारे जाने वाले पशुओं की संख्या भी कम नहीं है। चमड़ा मुलायम बनाने के लिए जिंदा बछड़ों को पहले बिजली के हंटर से तब तक मारा जाता है जब तक कि खून न छलक आये। क्रूरता का ऐसा दृश्य यदि सामान्य मनुष्य अपनी आंख से देख ले तो वह कदापि ऐसे चमड़े के बने हुए जूते पहनना स्वीकार नहीं करेगा। विज्ञान के नये-नये आविष्कारों के साथ ऐसी क्रूरता दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। महावीर ने तो पशु पर सीमा से अधिक भार लादना भी निषिद्ध माना था। पर आज जो क्रूरता पशु के साथ हो रही है उसके मुकाबले में अधिक भारारोपण नगण्य ही माना जायेगा।
अहिंसा का मूल भाव है कि प्राणी मात्र स्वतंत्रतापूर्वक जीवनयापन कर सके। अहिंसा का क्षेत्र इतना व्यापक है कि छोटे से छोटे प्राणी के प्रति भी करुणा का भाव उसमें समाविष्ट है। जैसा कि पर्यावरण के प्रकरण में कहा जा चुका है कि प्रकृति का संतुलन बनाये रखने में प्रत्येक प्राणी का योगदान है। अतः हम किसी भी प्राणी को अनावश्यक नहीं मान सकते हैं। किंतु अहिंसा का संबंध सर्वप्रथम तो मानव का मानव के प्रति व्यवहार से ही है। यह व्यवहार मुख्यतः चार प्रकार की हिंसाओं से युक्त है।
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