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________________ अहिंसा समाज का आधार है उपयोगिता । परिवार में, पड़ोस में, समाज में और राष्ट्र में व्यक्ति एक दूसरे के लिए उपयोगी होता है, इसलिए परस्पर मिलकर रहता है। यह सशर्त मैत्री है। जब तक हमारे लिए कोई उपयोगी है, हम उसके मित्र हैं। जैसे ही वह हमारे लिए उपयोगी नहीं रहता, हम उसके प्रति तटस्थ हो जाते हैं। जैसे ही वह हमारे हितों के विरुद्ध होता है, हम उसके शत्रु हो जाते हैं। इस कोटि की मैत्री व्यावहारिक है, यह परमार्थतः अहिंसा नहीं है। वास्तविक अहिंसा का आधार है आत्माओं की समानता। सबको मेरी तरह स्वतंत्र रहकर सुख की खोज करने का अधिकार है-यह चेतना वास्तविक अहिंसा है। जो मेरे लिए उपयोगी है, उसे मैं नहीं मारूंगा-यह स्वार्थ है परमार्थ नहीं। स्वार्थ के प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं है। प्रशिक्षण परमार्थ का होता हमारी आवश्यकता और अहिंसा ___ स्वार्थ का भी व्यवहार के लिए अपना मूल्य है ही। हमें आहार के लिए हिंसा भी करनी पड़ती है। “आहार के बिना जीवन नहीं है"-यह स्वार्थ की दृष्टि है। इसके रहते हम हिंसा से नहीं बच सकते। दूसरी ओर परमार्थ है। परमार्थ की दृष्टि से हमें किसी के भी जीवन को लेने का अधिकार नहीं है। यहां व्यवहार और परमार्थ में परस्पर टकराव है। समझौते का मार्ग यह होगा कि आवश्यक होने पर हिंसा करनी पड़ेगी। किंतु हम उस हिंसा को कर्तव्य नहीं मान सकते, उसे लाचारी ही मानना होगा। सहज निष्पत्ति यह होगी कि मनुष्य अपनी आवश्यकताओं को कम से कम करता चला जाए, ताकि उसके द्वारा होने वाली हिंसा कम से कम होती जाए। यह अहिंसा का विकासक्रम है। इसके दोनों पक्ष हैं। परमार्थ में यह समझ रहनी चाहिए कि कितनी भी आवश्यक क्यों न हो हमारे द्वारा किए गए छोटे से छोटे प्राणी की भी हिंसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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