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महावीर उवाच
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सफाया कर सकती है, हवा को गंदा कर सकती है और इसके आस-पास रहने वाले और उसमें काम करने वाले लोगों का जीवन दूभर और नरक बना सकती है। आधुनिक तकनीक ने मनुष्य को खनिज द्रव्यों को खोद कर निकालने की प्रचंड शक्ति दी है और साथ ही जीवन के लिए खतरा भी बढ़ा दिया है।
(पृष्ठ २५) खानों के कारण भूमि, जल, जंगल और हवा चारों ही दूषित होते हैं। फिर इन प्रकृति के संसाधनों के हास से या दूषित होने से उन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का जीवन भी बरबाद होता है। ___खान खुदाई का पहला काम उस जगह के पेड़-पौधों को काटना और ऊपर की मिट्टी हटाना है। चूंकि खदान खोद लेने के बाद उस को फिर से ठीक करने का काम नहीं होता है, इसलिए वहां की सारी धरती बंजर हो जाती
योजना आयोग के लिए तैयार की गई गोवा के पर्यावरण विकास संबंधी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि “बिक्री योग्य एक टन कच्चे लोहे के साथ औसतन २ टन फालतू चीजें निकाल कर फेंकनी पड़ती है। कचरे के उन ढेरों में से बहुत सारा भाग बारिश के पानी के साथ बहकर आस पास के खेतों में
और नदियों में फैलता है। खेतों में सूखने पर वह कचरा बहुत कड़ा हो जाता है, जिससे जमीन जोतना कठिन हो जाता है। छोटे किसान तो इसके कारण कंगाल बन जाते हैं। नदियों में इस कचरे से जिन क्षेत्रों में-जैसे गोवा में पहले कभी बाढ़ नहीं आती थी अब वहां भी बाढ़ आने लगी है।
भूमिगत खदानों में एक बड़ा खतरा जमीन के धंसने का रहता है। भूमिगत खदान की छत को लट्ठों और खंभों के सहारे थाम कर रखा जाता है। जब ऐसी भूमिगत खदानों को बंद करने का वक्त आता है तो उसमें ज्यादा-से-ज्यादा जितना भी कच्चा माल लिया जा सके, ले लेने की कोशिश की जाती है। ऐसे में जगह घेरने वाले खंभों और लट्ठों को भी हटाया जाने लगता है तब जमीन धंसने लगती है। जान की भी हानि होती है और खान का वह स्थान एक बड़ा गड्ढ़ा बन जाता है।
(पृष्ठ २६) ___ आज घाटी खतरे में है। इसका मुख्य कारण है चूना पत्थर का अंधाधुंध खनन । मसूरी एक समय पहाड़ों की रानी थी, आज हरे-भरे आवरण के छिन जाने से वह श्रीविहीन हो गई है। बताया जाता है कि पूरी घाटी में केवल १२ प्रतिशत जमीन पर ही हरा आवरण है जबकि ६० प्रतिशत पर होना जरूरी माना जाता है।
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