________________
महाप्रज्ञ उवाच
१२१
कभी मिटा और आज भी नहीं मिट रहा है। सूर्य की रश्मियां अंधकार को प्रकाश में बदल देती हैं। यही काम दीया करता है और बिजली भी करती है। यदि अंधकार से मुक्ति पाने का प्रयत्न न चलता तो उसका प्रभुत्व एकाकार हो जाता। मनुष्य की क्या दशा होती? प्राणी जगत् के सामने जीने का कोई विकल्प शेष न रहता। प्रकाश का अस्तित्व जीवन यात्रा को बनाए हुए है और उसने विकास को तेज किया है। यदि मनुष्य को बदलने का प्रयत्न नहीं होता तो हिंसा का एकछत्र साम्राज्य हो जाता। इस अवस्था में न समाज की कल्पना की जाती, न विकास के द्वार को खटखटाया जाता।
___ जागृति की प्रक्रिया के तीन पड़ाव हैं। पहला पड़ाव है विचार, नई व्यवस्था के लिए पुष्ट विचारों का व्यवस्थापन। दूसरा पड़ाव है विचार का संस्कार में परिवर्तन । तीसरा पड़ाव है आचार।।
विचार और आचार की दूरी को मिटाने का एक सेतु है और वह है संस्कार। एक विचार की दीर्घकाल तक पुनरावृत्ति करने पर वह संस्कार में बदल जाता है। संस्कार का निर्माण होने पर विचार और आचार की दूरी मिट जाती है। मार्क्स और गांधी के विचारों को संस्कार में बदलने की प्रक्रिया चालू रहती तो नई समाज व्यवस्था का सपना आकार ले लेता।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org