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महाप्रज्ञ उवाच
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की संतुलित अवस्था एवं निर्मलता के कारण। हमारा ध्यान इनकी ओर केन्द्रित होना चाहिए ।
मनुष्य सब प्राणियों में श्रेष्ठ प्राणी माना जाता है । उसकी श्रेष्ठता का कारण है उसका मस्तिष्क और मेरुदण्ड प्रणाली । यह उसकी अपनी विशेषता है। उस जैसा विकसित मस्तिष्क, नाड़ी तंत्र और मेरुदण्ड प्रणाली अन्य किसी को प्राप्त नहीं है ।
जहां क्रिया है, वहां शक्ति का व्यय है। जहां अक्रिया है वहां शक्ति का संरक्षण है । हम अतिक्रिया के कारण शक्ति का सही उपयोग नहीं कर पाते । • जो अपनी शक्ति का आवश्यक कार्यों के लिए उपयोग करना चाहता है, आगे बढ़ना चाहता है, उसके लिए संवेगों पर नियंत्रण करना जरूरी है ।
लगभग ५० प्रतिशत बीमारियां जीभ की संवेदनाओं के कारण होती हैं । पूरे शरीर को जितना ऑक्सीजन चाहिए उससे तिगुना ऑक्सीजन मस्तिष्क को चाहिए | उसकी पूर्ति दीर्घ श्वास के द्वारा होती है। उस स्थिति में मस्तिष्क काफी सक्रिय हो जायेगा । उसकी क्षमता का विकास होगा। यदि ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलेगा तो मस्तिष्क सुचारू रूप से काम नहीं कर पायेगा । विद्यार्थी में आलस्य और प्रमाद बढ़ेगा। उसका मन पढ़ाई में नहीं लगेगा |
कामवृत्ति का केन्द्र है नाभि से गुदा तक का स्थान, उपस्थ का स्थान । यह अपान का स्थान है। जब अपान पर प्राण का नियंत्रण रहता है तब वृत्तियां शान्त रहती हैं । जब अपान पर प्राण का नियंत्रण कम हो जाता है, तब अधोगामी वृत्तियां सक्रिय होने लगती हैं।
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परिस्थितिवाद के अनुसार यह माना जाता है - मनुष्य का निर्माण परिस्थिति अनुरूप होता है और परिवर्तन का निमित्त भी परिस्थिति है - इसलिए समाज का ध्यान परिस्थिति को बदलने पर केन्द्रित है। परिस्थिति मनुष्य को प्रभावित करती है, इसमें संदेह नहीं है । वह प्रभावित करने वाले घटकों में एक घटक है । वह परिवर्तन का एकमात्र हेतु नहीं है । वातावरण, पर्यावरण और परिस्थिति की समस्या को सुलझाने में उलझा हुआ मनुष्य समस्या को समाधान नहीं दे सकता । समाधान के लिए अनेकान्त का दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है। बदलाव के हेतु बाहर हैं, वैसे भीतर भी हैं। परिस्थिति मनुष्य को प्रभावित करती है, परन्तु वह मनुष्य के व्यवहार का नियंत्रण नहीं करती। उसका नियंत्रण करने वाले तत्त्व शरीर के भीतर विराजमान हैं। परिवर्तन के लिए उत्तरदायी हैं - नाड़ी तंत्र, ग्रन्थितंत्र, रसायन और प्रोटीन । नाड़ी तंत्र दो भागों में विभाजित है
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