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महाप्रज्ञ उवाच
__ एक साहूकार और एक अपराधी-दोनों का लक्ष्य समान है-अधिकतम उपभोग, अधिकतम सुविधा और अधिकतम धन।
जहां तरीके पर विचार करें, वहां साहूकार का दायरा अलग है, अपराधी का कटघरा अलग है। जहां लक्ष्य पर विचार करें, वहां साहूकार और अपराधी दोनों एक ही कारागृह के बंदी हैं।
आखिर विकास किसलिए? विकास के लिए मनुष्य है या मनुष्य के लिए विकास है? यदि विकास के लिए मनुष्य है तो वह विकास की मशीन का एक पुर्जा मात्र है। यदि मनुष्य के लिए विकास है तो मनुष्य के अस्तित्व पर विचार करना होगा।
इन्द्रिय चेतना के स्तर पर जीने वाले समाज का केन्द्रीय बिंदु है-इन्द्रिय तृप्ति । उसका साधन है-अर्थ । इसलिए अर्थ के प्रति आकर्षण होना स्वाभाविक
पूजा, प्रतिष्ठा, सम्मान की पूर्ति का सर्वाधिक शक्तिशाली साधन है-अर्थ । इसलिए अर्थ की आराधना अहेतुक नहीं है।
हर मनुष्य अधिक से अधिक सुख-सुविधा चाहता है। उसका साधन है-अर्थ इसलिए अर्थ के प्रति आकर्षण कम नहीं हो सकता।
परिग्रह के तीन प्रकार हैं-कर्म, शरीर और पदार्थ । जड़ में कर्म है, जहां से मूर्छा और अधिकार की भावना आ रही है। दूसरा परिग्रह है शरीर | तीसरा परिग्रह है-पदार्थ, धन, धान्य, मकान आदि। आदमी घर छोड़कर भी शरीर की आसक्ति को नहीं छोड़ता।
विज्ञान कहता है कि एक लाख से ज्यादा प्रकार के प्रोटीन हमारे शरीर के भीतर बनते हैं। रसायनों से भरा पड़ा है हमारा शरीर। इतना बड़ा कारखाना शरीर के भीतर है। उसको चलाने वाला चाहिए, उसका स्विच बोर्ड
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