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________________ 18 लेश्या और मनोविज्ञान आत्मा शरीरव्यापी होने के कारण चैतन्य पूरे शरीर में व्याप्त है। किन्तु कुछ ऐसे स्थान हैं जहाँ पर चैतन्य की सघनता है। ऐसे स्थान विशेष चैतन्य केन्द्र कहे जाते हैं । ये ज्ञान और शक्ति की अभिव्यक्ति के मुख्य स्रोत हैं। इनमें रंगों का अस्तित्व व्याप्त है। जब तक चैतन्य केन्द्रों का जागरण/निर्मलीकरण नहीं होता, व्यक्ति अशुभ लेश्या/भावों में जीता है। इनके शुद्धिकरण हेतु ज्ञानकेन्द्र, ज्योतिकेन्द्र, दर्शनकेन्द्र, विशुद्धिकेन्द्र व आनन्दकेन्द्र पर क्रमशः पीत, श्वेत, अरुण, नीला एवं हरे रंग का ध्यान किया जाता है। आधुनिक मनोवैज्ञानिकों एवं चिकित्सकों ने इस बात को स्वीकृति दी है कि मस्तिष्क एवं सुषुम्ना पर किए गए रंगों के प्रयोग अधिक प्रभावी होते हैं, क्योंकि ये ऊर्जा-स्रोत हैं। इस ग्रन्थ में लेश्या ध्यान की चर्चा व्यक्तित्व बदलाव के सन्दर्भ में की गई है, क्योंकि यह जीवन से सीधा जुड़ा पक्ष है। स्वस्थ व्यक्तित्व के विकास के लिए जरूरी है कि हम शुभ लेश्याओं द्वारा शारीरिक, मानसिक और उपाधिजनित दोषों का प्रक्षालन करें। मनोवैज्ञानिक चिकित्सा विधियों के साथ रंगों द्वारा भावचिकित्सा विधि को भी अवश्य जोड़ा जाए जिससे चैतसिक निर्मलता प्राप्त हो सके। लेश्या और रंग-मनोविज्ञान में लेश्या के सभी पक्षों को छूने का प्रयत्न किया गया है। यद्यपि विशाल एवं गहन लेश्या के ज्ञान को पूर्णता से पकड़ पाना संभव नहीं, क्योंकि ज्ञान असीम है और बुद्धि की अपनी सीमा है। फिर भी लेश्या के अध्ययन में विविध रंगों और मानव व्यक्तित्व पर उसके मनोवैज्ञानिक पक्ष को उजागर करने का उद्देश्य रहा है । यद्यपि बहुत कुछ शेष रह गया है मगर आशा और विश्वास है कि भविष्य में शेष को अशेष बनाने का प्रयास गतिशील रहेगा। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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