SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राथमिकी 15 जरूरी है। यदि व्यक्ति चोर, हिंसक, झूठा व मायावी है तो उसके आभामण्डल में उभरने वाले रंग धब्बेदार और भद्दे होंगे। भावधारा मलिन और अस्त-व्यस्त होने के कारण ऐसे व्यक्तियों के आभामण्डल को सही ढंग से देखना और उनके व्यक्तित्व की सही-सही व्याख्या करना मुश्किल है। यद्यपि आत्मा/चेतना का अपना कोई रंग नहीं। जैसे पुद्गल ग्रहण किये जाते हैं, आत्मा के भाव भी उसी प्रकार के हो जाते हैं। पुद्गल में स्पर्श, रस, गंध और वर्ण होने से बाहर से ग्रहण किए गए सभी पुद्गल रंगीन होते हैं । लेश्या द्वारा गृहीत ये पुद्गल भीतर जाकर भावों को बनाते हैं। जैसी भावधारा होगी, वैसे ही पुद्गल आकृष्ट होंगे और जैसे पुद्गल ग्रहण किये जायेंगे, वैसी ही भावधारा होगी। भावों और पुद्गलों का, भावों और रंगों का यह अन्योन्याश्रित संबंध जीवन की व्याख्या के लिए महत्त्वपूर्ण है। विकास के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। लेश्या और आभामण्डल में रंगों की विविध छवियों का अपना विशिष्ट महत्व होता है। रंग की छवियों की तारतम्यता होने पर रंग का प्रभाव बिल्कुल भिन्न हो जाता है । लेश्या के तारतम्यता के कारण भावचेतना में अंतर आ जाता है। भाव-चिकित्सा के क्षेत्र में रंगों को बदल कर भावों को बदलने का प्रयत्न किया जाता है। मन और शरीर की स्वस्थता इससे स्वतः ही प्राप्त होती है। लेश्याध्यान/रंगध्यान इसी प्रक्रिया का संवाहक है। इस ध्यान द्वारा चक्रों/विशिष्ट चैतन्यकेन्द्रों पर शुभ रंगों का ध्यान कर व्यक्ति की भावधारा को बदला जा सकता है। प्रस्तुत प्रकरण में लेश्या के साथ आभामण्डल की चर्चा को इसलिए प्रासंगिक एवं महत्त्वपूर्ण माना गया, क्योंकि लेश्या का सीधा संबंध सूक्ष्म शरीर/तैजस शरीर से है । तैजस शरीर विद्युत शरीर है। इससे निरन्तर विद्युत तरंगें विकिरित होती रहती हैं । ये विकिरणें स्थूल शरीर के चारों ओर वलय बनाती हैं जिसे आज आभामण्डल की संज्ञा दी जाती है। आभामण्डल की पहचान रंगों द्वारा होती है। लेश्या का संबंध पौद्गलिक स्तर पर रंगों के साथ और चैतसिक स्तर पर भावों के साथ जुड़ा है। भाव और रंग दोनों मिलकर व्यक्ति के व्यक्तित्व की व्याख्या करने में सक्षम हैं। लेश्या और व्यक्तित्व निर्माण ___ जैन-दर्शन चित्त के बदलते स्वरूप को अच्छी तरह जानने और व्यक्ति की चेतना के स्तर पर घटित होने वाले विभिन्न व्यवहारों को समझने के लिए लेश्या का विश्लेषण प्रस्तुत करता है। लेश्या के मनोवैज्ञानिक अध्ययन के सन्दर्भ में यह अनिवार्य-सा प्रतीत होता है कि मनोविज्ञान में व्याख्यायित व्यक्तित्व के निर्माण, विकास और बदलाव के बिन्दुओं पर चर्चा की जाए। यह भी जरूरी है कि चेतना के बाहरी और भीतरी दोनों स्तरों से जुड़े लेश्या सिद्धान्त का इस संबंध में क्या मंतव्य है, यह भी जान लिया जाए। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy