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________________ उपसंहार 217 ___ आधुनिक अवधारणा के अनुसार आभामण्डल (aura) किसी भी व्यक्ति, प्राणी या वस्तु का एक विद्युत् चुम्बकीय विकिरण है जो एक रंगीन वलय के रूप में उसके चारों ओर बनता है और जिसे विशेष उपकरणों (किर्लियन फोटोग्राफी) द्वारा पकड़ा जा सकता है - जिसका फोटो लिया जा सकता है। ___ जैन दर्शन में वर्णित तैजस शरीर और लेश्या भी पुद्गल विशेष के ऐसे विकिरण हैं जो विद्युन्मय परिणति के द्वारा हमारी चेतना एवं शरीर को प्रभावित करते हैं । यद्यपि यह अनुसंधान का विषय है कि तैजस शरीर, लेश्या, आभामण्डल, जैव विद्युत् आदि परस्पर किस प्रकार सम्बन्धित हैं तथा दृश्य जगत् की घटनाओं को वे किस प्रकार प्रभावित करते हैं; फिर भी इतना तो निर्विवाद कहा जा सकता है कि सूक्ष्म स्तर पर घटित होने वाले तैजस शरीर एवं लेश्या के परिणाम ही जैव विद्युत् आभामण्डल आदि स्थूल स्तरीय परिणमनों के लिए जिम्मेवार हैं। लेश्या विधायक व्यक्तित्व का संवाहक सूत्र संसारी प्राणी के द्वन्द्वात्मक-जड़-चेतनात्मक अस्तित्व को व्याख्यायित करने वाला जैन-दर्शन का एक महत्त्वपूर्ण आयाम लेश्या को माना जा सकता है। मनोविज्ञान के सन्दर्भ में इसी प्रश्न का समाधान जब खोजा गया तो एक महत्त्वपूर्ण जीवन का पक्ष उभरकर सामने आया - व्यक्तित्व। दोनों की संयुक्त चर्चा न केवल एक-दूसरे की पूरक बनी है, अपितु अनेक नए तथ्यों की उद्घाटक भी है। कार्यकारण का सिद्धान्त केवल दार्शनिक जगत का ही मान्य सिद्धान्त नहीं है, अपितु जीवन के सभी पक्षों के साथ वह किसी न किसी रूप में जुड़ा रहता है। व्यक्तित्व के घटकनिमित्त और उपादान की मीमांसा में लेश्या सिद्धान्त स्वयं विश्लेषक सूत्र बना है। व्यक्तित्व की व्याख्या लेश्या सापेक्ष है। द्रव्यलेश्या और भावलेश्या परस्पर एक-दूसरे के निमित्त कारण कहे जा सकते हैं। दूसरे शब्दों में भावलेश्या कारण है और द्रव्यलेश्या उसका कार्य। भावलेश्या कर्मचेतना है, द्रव्यलेश्या एक विशेष पौद्गलिक रचना। दोनों की परस्पर संयुति के बिना आचरण और व्यवहार एक-दूसरे से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते। आगमिक भाषा में भावलेश्या द्रव्यलेश्या से और द्रव्यलेश्या भावलेश्या से प्रभावित होती रहती है। लेश्या के साथ शरीर की चर्चा भी अपेक्षित समझी गई, क्योंकि मनोभावों की अभिव्यक्ति का मुख्य केन्द्र शरीर है और शरीर से द्रव्यलेश्या का सीधा संबंध है। शरीर की उपादेयता सिर्फ जीवन में ही नहीं, मुक्ति के प्रसंग में भी है। भगवान महावीर ने शरीर को संसार-सागर पार कराने वाली नौका कहा है। शरीर साधन है साध्य तक पहुंचने का। शरीर और मन का परस्पर गहरा संबंध है। आज चिकित्सा के क्षेत्र में यह बात निश्चित हो गई है कि दैहिक बीमारियों के पीछे मनोवैज्ञानिक कारण निहित है। प्रत्येक विचारवान चिकित्सक जानता है कि स्वास्थ्य के लिए मनोवैज्ञानिक तत्त्व उतने ही वास्तविक एवं प्रभावशाली हैं जितने भौतिक एवं रासायनिक Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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