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लेश्या और मनोविज्ञान
प्रश्न उभरता है कि हम चेतना तक कैसे पहुंचे? इस प्रश्न के समाधान में भगवान महावीर ने रंगों को पकड़ा। रंग बाहरी एवं भीतरी व्यक्तित्व के दोनों पक्षों को प्रभावित करते हैं। स्थूल से सूक्ष्म शरीर तक उसकी प्रभावकता है। लेश्या रूपान्तरण में भी प्रशस्त रंगों के ध्यान से रासायनिक परिवर्तन होता है । फलतः हमारा विचार और व्यवहार बदलता है। रंग ध्यान के माध्यम से अशुभ लेश्याओं से शुभ लेश्याओं में प्रवेश पाया जा सकता है। लेश्या और आभामण्डल
लेश्या के साथ आभामण्डल का गहरा संबंध है । यद्यपि जैनदर्शन के मौलिक साहित्य में आभामंडल नामक अवधारणा का प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं है फिर भी तैजस शरीर और आभामण्डल में लेश्या की स्वरूप साम्यता के आधार पर इन्हें एक ही तत्त्व के दो रूप प्रतिपादित मानना असमीचीन नहीं है। ___ हमारे स्थूल शरीर के साथ दो सूक्ष्म शरीर जुड़े हैं - तैजस शरीर और कर्म शरीर। चेतना में कर्म शरीर के स्पन्दन तैजस शरीर के पास पहुँचकर भाव बनते हैं। भाव हमारे मस्तिष्क के एक भाग हायपोथेलेमस में पहुंचकर अभिव्यक्त होते हैं और विचार तथा व्यवहार को संचालित करते हैं। उन भावों के आधार पर हमारा आभामण्डल बनता है।
आभामण्डल पौद्गलिक है, उसका सीधा संबंध तैजस शरीर (विद्युत शरीर) से है। इसका निर्माण चैतसिक भावधारा से होता है। चेतना तैजस शरीर को सक्रिय करती है। सक्रिय विद्युत शरीर से प्रतिक्षण विकिरण होता है। यह विकिरण शरीर के चारों ओर अण्डाकार घेरा बना लेता है। पौद्गलिक विकिरणों का अपना रंग होता है। भीतरी भावों के आधार पर रंगों की छवियां बनती हैं और उसी के आधार पर व्यक्ति का चरित्र निर्मित होता है।
आगम वर्णित नौकर्म लेश्या आभामण्डल की विवेचना में विशेष अर्थ रखती है। नौकर्मलेश्या यानी पौद्गलिक वस्तुओं का आभावलय। चन्द्रमा, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारा, प्रकीर्ण, ज्योति, आभरण, मणि, कांकिणी आदि के प्रशस्त विकिरणे शरीर और मन के लिए लाभकारी होती हैं। अप्रशस्त विकिरणों का प्रभाव इसके विपरीत होता है। ___ ऑकल्ट साइन्स के पुरस्कर्ताओं ने दो प्रकार के आभामण्डल बतलाए - भावनात्मक
और मानसिक आभामण्डल (Emotional and Mental Aura) लेश्या सिद्धान्त के सन्दर्भ में कहा जा सकता है कि योग मानसिक आभामण्डल और कषाय भावनात्मक आभामण्डल का निर्माण करता है। आभामण्डल की अवधारणा ने भविष्य की अनेक संभावनाओं को उजागर किया है। रंगों के परिवर्तन से व्यक्ति का स्वभाव परिवर्तन होता है। यह व्यक्तित्व की सही पहचान कराता है, विधेयात्मक चिन्तन की संरचना करता है। इसके आधार पर जीवन की भविष्यवाणी की जा सकती है। आभामण्डल को तैजस शरीर, तेजोलेश्या और तैजस समुद्घात के सन्दर्भ में अध्ययन करने पर अनेक नए आयाम खोजे जा सकते हैं।
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