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________________ 212 लेश्या और मनोविज्ञान लेश्या द्वारा मनोभावों की व्याख्या लेश्या भावधारा है। उसे मानसिक संप्रत्यय नहीं कहा जा सकता। वह मन को प्रभावित करती है। मन की मलिनता और निर्मलता का संबंध लेश्या के परिणामों से है। मानसिक चिन्तन के साथ लेश्या के प्रशस्त-अप्रशस्त होने का प्रश्न जुड़ा है। ___ यह सही है कि लेश्या/भावधारा को छोड़कर मानसिक दशाओं की व्याख्या नहीं की जा सकती। इसलिए मनोविज्ञान के सन्दर्भ में लेश्या का अध्ययन आज जरूरी समझा जा रहा है। आगमों में प्रत्येक लेश्या के साथ व्यक्ति के गुणात्मक चरित्र को प्रस्तुति दी गई है। इसका मूलस्रोत है - भीतरी चेतना । जब भाव मानसिक स्तर पर उभरते हैं तब साहित्य की भाषा में इन्हें मनोभाव कहा जाता है। लेश्या मनोभावों की व्याख्या है। ___ लेश्या को युगीन सन्दर्भो में व्याख्यायित करना इस शोध निबन्ध का मुख्य उद्देश्य रहा है। लेश्या सिद्धान्त जीवन की प्रयोगशाला में उतरकर अनेक निर्माणकारी उपलब्धियाँ ला सकता है, क्योंकि यह व्यक्तित्व रूपान्तरण की एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। यह केवल शरीर और मन की व्याधियों का विश्लेषण ही नहीं करता, अमितु भाव-चिकित्सा की एक पूरी पद्धति भी प्रस्तुत करता है। ___ जीवन का हर पक्ष भावों से जुड़ा है। प्रश्न उभरता है - भाव आते कहां से हैं? दार्शनिक क्षेत्र में इस जिज्ञासा ने अज्ञात मन की खोज की। बहुत कुछ दीखता है पर बहुत कुछ ऐसा भी है जिसका कारण ज्ञात नहीं होता। कार्यकारण की मीमांसा में मनोविज्ञान अज्ञात/अचेतन मन तक पहुंचा और जैन-दर्शन ने कर्मशास्त्रीय भाषा में चेतना के सूक्ष्म स्तर अध्यवसाय को पकड़ा। अध्यवसाय और लेश्या का गहरा संबंध है। आगम कहता है कि शुभ लेश्या और अशुभ लेश्या का हेतु क्रमशः प्रशस्त तथा अप्रशस्त अध्यवसाय है। अध्यवसायों की प्रशस्तता के आधार पर ही कृष्ण लेश्या वाला जीव शुभ आयुष्य का और अप्रशस्तता से शुक्ल लेश्या वाला जीव अशुभ आयुष्य का बन्ध कर लेता है। __लेश्या का अध्ययन करते समय अचेतन मन की व्याख्या अधिक महत्त्वपूर्ण और अनिवार्य लगती है। मनोविज्ञान ने अचेतन मन को पकड़ा। फ्रायड ने कहा - अचेतन मन में संस्कार भरे पड़े हैं। जो वासनाएं, इच्छाएं, आकांक्षाएं दमित होती हैं, वे अचेतन में चली जाती हैं। युंग ने इसकी पूर्ण परिभाषा देते हुए कहा - अचेतन मन केवल दमित इच्छाओं का भण्डार ही नहीं, उसमें अच्छे संस्कार भी हैं। इसीलिए युंग ने मन (Mind) को ज्यादा महत्त्व नहीं दिया। उसने "साइक" (Psyche) शब्द का प्रयोग किया जो स्थायी और जिम्मेदार तत्त्व है। हजारों वर्षों पहले कर्मशास्त्र के सन्दर्भ में लेश्या की मनोवैज्ञानिक व्याख्या की। उसकी व्याख्या में युंग का मत अधिक संगत लगता है। जैन-दर्शन कर्मशास्त्र के आधार पर दो Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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