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________________ रंगध्यान और लेश्या 205 एलेक्स जोन्स का भी कहना है कि पीला रंग लज्जा, विश्वासघात, झूठ, धनलिप्सा, क्रोध, घृणा, अज्ञान, इच्छा, सांसारिकता, ईर्ष्या और हतोत्साह जैसी सभी समस्याओं की चिकित्सा करता है । जब पीले रंग पर ध्यान किया जाता है तो बौद्धिक तथा मानसिक शक्ति इससे प्रभावित होती है। जब आभामण्डल में यह रंग चमकता है तो रचनात्मक तथा विश्लेषणात्मक योग्यताएं उत्पन्न होती हैं। दिल और दिमाग का सन्तुलन हो जाता है। पद्मलेश्या ऊर्जा के उत्क्रमण की प्रक्रिया है। इसके जागने पर कषायों की अल्पता आती है। आत्मनियंत्रण सधता है और मन प्रशान्त रहता है। शुक्ललेश्या का ध्यान - शुक्ललेश्या का ध्यान ज्योतिकेन्द्र पर पूर्णिमा के चन्द्रमा जैसे श्वेत रंग में किया जाता है। शरीर शास्त्रीय दृष्टि से ज्योतिकेन्द्र का स्थान पिनियल ग्रंथि है। कषाय, कामवासना, असंयम, आसक्ति आदि संज्ञाओं को उत्तेजित और उपशमित करने का कार्य अवचेतक मस्तिष्क (Hypothalamus) से होता है। इसके साथ ज्योति केन्द्र का गहरा संबंध है। अवचेतक मस्तिष्क का सीधा संबंध पिट्यूटरी और पिनियल के साथ है। ध्यान के क्षेत्र में श्वेत रंग द्वारा जब ज्योति केन्द्र जागता है तब पिनियल ग्रंथि सक्रिय होती है और एक सन्तुलित व्यक्तित्व सामने आता है, क्योंकि नीचे के सभी ग्रंथि-स्रावों को नियंत्रण करने वाली यही ग्रंथि है। इस पर ध्यान करने से शारीरिक, मानसिक समस्याएं भी सुलझ जाती हैं। लेश्या-ध्यान में सफेद रंग का ध्यान वीतरागता की ओर प्रस्थान कराने वाला माना गया है। शुभध्यान शुभमनोवृत्ति की सर्वोच्च भूमिका है। शुक्ललेश्या का ध्यान आत्म-साक्षात्कार की क्षमता जगाता है। यहां से भौतिक और आध्यात्मिक जगत का अन्तर समझ में आने लगता है। एडगर सेसी (Edgar cayce) ने सफेद रंग को पूर्णता का प्रतीक माना। उन्होंने बताया कि हमारा सम्पूर्ण जीवन सन्तुलन में है तो इसका मतलब है कि हमारे सभी प्रकम्पन सिमट जाते हैं और हमारा आभामण्डल पवित्र तथा सफेद प्रकाश से भर जाता है। रंग चिकित्सा के क्षेत्र में प्राण ऊर्जा का असन्तुलन सभी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक बीमारियों का मूल कारण है। आगम के अनुसार शुक्लध्यान सम्पूर्ण जागृत चेतना की उपलब्धि है । जब शुक्लध्यान सध जाता है, तब मनुष्य अव्यथ चेतना, अमूढ़चेतना, विवेकचेतना और व्युत्सर्ग चेतना का धनी बन जाता है। इसीलिए शुक्ललेश्या का लक्षण बताया गया कि इस लेश्या में मनुष्य प्रशान्त, प्रसन्नचित्त, जितेन्द्रिय, आत्मदमी, समितियों से शमित, गुप्तियों से गुप्त, सराग या वीतराग होता है। 1. Alex Jones, Seven Mansions of Colour, p. 41-42 2. Edgar Cayce, Auras, p. 14; 3. ठाणं 4/70% 4. उत्तराध्ययन 34/31, 32 Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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