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रंगध्यान और लेश्या
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किया जाता है, क्योंकि हरे रंग के ध्यान से विवेक शक्ति, निर्णायक क्षमता, आशावादिता जागती है।
नीला रंग – नीले रंग का ध्यान उस समय व्यक्ति को करना चाहिए, जब व्यक्ति प्रतिक्रियावादी, आक्रामक, रूढ़िवादी और भयभीत होता है। चमकदार नीला रंग इन संस्कारों का उपशमन कर देता है । फलत: व्यक्ति में शान्ति, धैर्य, सन्तोष, वफादारी और आध्यात्मिक विकास उतरने लगता है।
जामुनी और बैंगनी रंग - इस रंग का ध्यान उन व्यक्तियों के लिये अत्यावश्यक है जो भ्रम/माया में फंसे हुए हैं। भौतिकता में डूबे हैं। काल्पनिक चिन्तन में खोये रहते हैं। ऐसे व्यक्ति जब चमकदार रंग का ध्यान करते हैं तो उनमें अन्त:प्रेरणा और आन्तरिक शक्ति जागती है। वे भविष्य को साक्षात् देखने लगते हैं। लेश्या ध्यान
प्रेक्षाध्यान पद्धति में लेश्या ध्यान की अवधारणा मुख्यत: व्यक्तित्व रूपान्तरण की ओर संकेत करती है। यदि हम अशुभलेश्या से शुभलेश्या में आना चाहते हैं तो रंगों द्वारा इस उद्देश्य तक पहुँचा जा सकता है।
लेश्या ध्यान में मुख्य तीन रंगों का चयन किया जाता है। चमकता श्वेत, लाल और पीला - ये तीनों रंग शुभ्र, प्रशस्त एवं मनोज्ञ हैं। इनका भिन्न-भिन्न चैतन्यकेन्द्रों पर ध्यान करवाया जाता है। आचार्य महाप्रज्ञ ने जैनयोग पुस्तक में चैतन्यकेन्द्रों पर रंगों के ध्यान के बारे में बताते हुए लिखा है - लाल रंग का ध्यान करने से शक्तिकेन्द्र (मूलाधार चक्र)
और दर्शनकेन्द्र (आज्ञा चक्र) जागृत होते हैं। पीले रंग का ध्यान करने से आनन्दकेन्द्र (अनाहत चक्र) जागृत होता है। श्वेत रंग से विशुद्धि केन्द्र (विशुद्धि चक्र) तैजसकेन्द्र (मणिपुर चक्र) और ज्ञानकेन्द्र (सहस्रार चक्र) जागृत होते हैं।'
तेजोलेश्या का ध्यान - तेजोलेश्या का दर्शनकेन्द्र पर बालसूर्य जैसे लाल रंग में ध्यान किया जाता है। यह दर्शन केन्द्र पिट्यूटरी ग्रंथि का क्षेत्र है। वैज्ञानिकों ने भी इसका रंग लाल बतलाया है। यह सभी ग्रंथियों पर नियंत्रण करती है, इसलिए इसे 'मास्टर ऑफ ग्लैण्ड' कहा जाता है। अध्यात्म की भाषा में इसे तृतीय नेत्र भी कहा गया है। पिट्यूटरी ग्रंथि सक्रिय होने पर एड्रीनल ग्रंथि के स्राव को संयमित करती है। फलत: कामवासना, उत्तेजना आदि निषेधात्मक वृत्तियां अनुशासित रूप में अपना कार्य करती हैं। ___ लाल रंग रीढ़ की हड्डी के मूल-मूलाधार चक्र का नियंत्रक है। तंत्रशास्त्र और योगशास्त्र में मूलाधार/शक्तिकेन्द्र का रंग लाल माना गया है। यह रंग एड्रीनल के स्रावों को सक्रिय करता है। एड्रीनल का पिट्यूटरी के साथ गहरा संबंध है। अतः पिट्यूटरी/ दर्शनकेन्द्र पर ध्यान करने से इस ग्रंथि का नियंत्रण होने लगता है। लाल रंग साहस, शक्ति,
1. आचार्य महाप्रज्ञ - जैन योग, पृ. 142
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