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लेश्या और मनोविज्ञान
देखने और जानने की प्रक्रिया - प्रेक्षाध्यान
जैन साहित्य में प्रेक्षा और विपश्यना दोनों शब्द एकार्थक माने गए हैं। प्रेक्षा का अर्थ है - गहराई में उतर कर देखना। ध्यान पद्धति की प्रेक्षाध्यान संज्ञा स्वयं में अनावृत्त चैतन्य की गुणसत्ता को समेटे हुए है। ___दसवैकालिक सूत्र में कहा गया - "संपिक्खए अप्पगमप्पएणं" आत्मा के द्वारा आत्मा की संप्रेक्षा करो, मन द्वारा मन को देखो, स्थूल चेतना द्वारा सूक्ष्म चेतना को देखो।
देखना ध्यान का मूल तत्त्व है । चैतन्य का मूल गुण है - केवल देखना, केवल जानना। भगवान महावीर ने बार-बार साधक को सम्बोधित करते हुए कहा - जानो और देखो। आयारो में अनेक सूक्त प्रेक्षा की सार्थक व्याख्या है - हे आर्य ! तू जन्म और वृद्धि के क्रम को देख। जो क्रोध को देखता है वह मान, माया, लोभ, प्रिय, अप्रिय, मोह, गर्भ, जन्म, मृत्यु, नरक, तिर्यञ्च, दु:ख को भी देखता है। जो जन्म से दु:ख पर्यन्त सीमाओं को देखता है वह इस चक्रव्यूह को तोड़ देता है । महान साधक अकर्म होकर जानता, देखता है। जो देखता है उसके लिये कोई उपदेश नहीं। जो देखता है उसके लिये लिये कोई उपाधि नहीं। देखना और जानना आत्मदर्शन की प्रक्रिया है। जो देखता और जानता है वह विकल्पशून्य एकाग्र हो जाता है। उसका दृश्य के प्रति सारा दृष्टिकोण ही बदल जाता है।' ___भगवान महावीर ऊंचे, नीचे और मध्य में प्रेक्षा करते हुए समाधि को प्राप्त हो जाते थे। उनकी साधना पद्धति के प्रसंग में त्राटक ध्यान का वर्णन मिलता है। भगवान् अनिमेष लम्बे समय तक एक पुद्गल पर स्थिर दृष्टि रखते। वे केवल देखते, केवल जानते। इस ज्ञाताद्रष्टाभाव में न प्रियता रहती, न अप्रियता, क्योंकि द्रष्टा का दृश्य के प्रति दृष्टिकोण ही बदल जाता है। समयसार कहता है कि उस समय उसके न कर्मबन्ध होता है और न विपाक में आए हुए कर्म का वेदन करता है, न भोगता है।'
ध्यान के सन्दर्भ में भगवान महावीर ने शिष्य गौतम को उपदेश दिया - "समयं गोयम मा पमायए" गौतम ! तूं क्षणभर भी प्रमाद मत कर। इस उपदेश के साथ उन्होंने अप्रमत्त रहने की साधना भी बताई। जो जागृत होता है, वही अप्रमत्त होता है। अप्रमत्त को कभी, कहीं, किसी से भय नहीं लगता, क्योंकि वह प्रतिक्षण जागृत रहता है। _जैन साहित्य में अप्रमत्तता की साधना के लिए आलम्बन सूत्र यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं। प्रेक्षाध्यान पद्धति उन्हीं बिखरे सूत्रों के संकलन का एक प्रयास है। इस साधना पद्धति में सिद्धान्त और प्रयोग दोनों दृष्टियों से विचार किया गया है, क्योंकि बिना सैद्धान्तिक
1. दसवैकालिक चूलिका 2/15 2. आचारो 3/26, 3/84, 5/120, 2/185, 3/87, 9/4/14, 2/118 3. समयसार गाथा 316, 320
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