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________________ संभव है व्यक्तित्व बदलाव 161 जैन-दर्शन ने गुणस्थानों के आरोह-अवरोह की व्याख्या आत्म-विशुद्धि के आधार पर की। उसने दो श्रेणियां बतलाई - उपशम श्रेणी और क्षायिक श्रेणी । उपशम श्रेणी वाला प्राणी अपनी मूल प्रवृत्तियों को, संवेगों को, भावों को दबाते हुए दसवें गुणस्थान तक पहुंचाता है और वहां अचानक आवेगों-संवेगों का ऐसा ज्वार उठता है कि ऊपर जाने के बजाय सीधा नीचे आ जाता है। क्षायिक श्रेणी वाला दसवें गुणस्थान से सीधा बारहवें गुणस्थान में चला जाता है। यह दमन और शमन की बात है। व्यक्तित्व बदलाव में वृत्तियों का क्षय होना जरूरी है। उदात्तीकरण मौलिक मनोवृत्ति के दिशा-बदलाव की प्रक्रिया है। एक व्यक्ति में काम की मनोवृत्ति है । जब यह वृत्ति उदात्त बनती है तब कला, सौन्दर्य आदि अनेक विशिष्ट अभिव्यक्तियों में बदल जाती है। लेश्या के सन्दर्भ में इसे क्षयोपशम कहा जा सकता है। व्यक्ति के भीतर मोह, राग, द्वेष आदि जितने भी दोष हैं उनका परिशोधन, उदात्तीकरण किया जा सकता है। जैनाचार्यों ने दो शब्द दिए - प्रशस्त राग और अप्रशस्त राग। यद्यपि राग अच्छा नहीं होता, परन्तु धर्म, गुरु, इष्टदेव के प्रति उत्पन्न राग को प्रशस्त कहा गया। 'धम्माणुराग' शब्द इसी का निर्वाहक है। यह राग का उदात्तीकरण है। मार्गान्तरीकरण में मूल प्रवृत्ति का रास्ता बदल दिया जाता है। जैन-दर्शन की भाषा में इसे प्रतिपक्षी भावना कहते हैं । इस पद्धति में क्रोध को क्षमा में, मान को विनम्रता में, माया को ऋजुता में, लोभ को सन्तोष में बदल देते हैं।' यह दोषों का मार्गान्तरीकरण है। बुरी आदतों को अच्छी आदतों में ढालने का सफल प्रयत्न है। जब शुभलेश्या में प्रवेश होता है तो जीने की सारी दिशा ही बदल जाती है। अतः कहा जा सकता है कि लेश्या चरित्र निर्माण की संवाहिका है। - लेश्या बदलाव की प्रक्रिया में लेश्या ध्यान (रंगध्यान) सशक्त भूमिका निभाता है। इस विषय पर विशेष रूप से "लेश्या और ध्यान" वाले अध्याय में विस्तृत चर्चा की गई है। 1. दसवैआलियं 8/38 Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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