________________
संभव है व्यक्तित्व बदलाव
मानव
भारतीय दर्शन में महर्षि अरविन्द ने भी इसी सन्दर्भ में गवेषणा कर कहा प्रकृति में परिवर्तन अतिचेतन को उत्तरोत्तर चरितार्थ करने से उपलब्ध होता है । परन्तु अतिचेतन को चरितार्थ करने का उपाय एकमात्र शुद्ध अभीप्सा है यानी उन्नत होने की सच्ची अभीप्सा । व्यक्ति जब शुद्ध अभीप्सा द्वारा अपनी शारीरिक संवेगात्मक तथा बौद्धिक सीमाओं से ऊपर उठकर अपनी अन्तरात्मा में प्रवेश करके अपने स्वरूप और बाह्यजगत पर दृष्टिपात करता है तब उसके व्यक्तित्व में वह परिपक्वता आ जाती है जिसकी अभिव्यक्ति शांति, आनन्द और प्रकाश के अनुभव में दिखाई पड़ती है ।'
परिपक्व व्यक्ति सभी स्वार्थों से मुक्त रहता है। न तो उसमें अहंकार होता है और न आसक्ति । वह निरन्तर अन्तर भाव में रहता है। अरविन्द ने यह व्याख्या केवल भौतिक परिप्रेक्ष्य में नहीं की, वरन उनकी दृष्टि आध्यात्मिक एवं दिव्यजीवन की ओर भी रही है ।
परिपक्व व्यक्तित्व की अवधारणा मनुष्य के भीतर छिपी उस शुद्ध सत्ता की संभावना का प्रकटीकरण है जो ज्ञान, भाव और संकल्प सभी का आधार होते हुए भी सभी से ऊपर निर्विकल्प, वीतरागता की स्थिति है। शुद्ध सत्ता तक पहुंचना मनुष्य का साध्य है । इस साध्य तक पहुंचने में शुक्ललेश्या के आत्मपरिणामों का होना आवश्यक है। अतः व्यक्तित्व बदलाव की प्रक्रिया में "लेश्याविशुद्धि कैसे हो ?" इस बिन्दु पर साधना के कुछेक तथ्यों की चर्चा आवश्यक है ।
लेश्या विशुद्धि : व्यक्तित्व बदलाव
स्वभाव अवश्य बदलता है, क्योंकि बदलना शाश्वत नियम है। समय का, शक्ति का, श्रद्धा का, पुरुषार्थ का अन्तर हो सकता है पर निष्पत्ति का नहीं । यदि स्वभाव परिवर्तन की बात न मानें तो आत्मविकास की सारी सम्भावनाएं रुक जाती हैं ।
153
यद्यपि प्राणी अपने कृतकर्मों का शुभ-अशुभ फल स्वयं भोगता है, क्योंकि उन सबका वह स्वयं कर्त्ता है। कर्मों के फल भोग में कहीं परिवर्तन की संभावना नहीं, किन्तु इस सिद्धान्त के साथ भी कुछ कर्म विपाक के अपवाद जुड़े हैं। कर्म की दस अवस्था में उदीरणा, संक्रमण, उद्वर्तना, अपवर्तना की प्रक्रिया द्वारा विपाक को बदला जा सकता है।
संक्रमण का सिद्धान्त व्यक्तित्व बदलाव का संवाहक सूत्र है। इसके द्वारा पुण्य पाप में और पाप पुण्य में बदल जाता है। आधुनिक जीव विज्ञान की नई अवधारणायें और मान्यतायें संक्रमण सिद्धान्त की उपजीवी कही जा सकती हैं। जीन्स को बदलकर पूरी पीढ़ी का कायाकल्प किया जा सकता है।
लेश्या-विशुद्धि के सन्दर्भ में स्थानांग सूत्र' में उल्लिखित पुण्य-पाप बदलने की पद्धति के चार विकल्प विशेष अर्थपूर्ण हैं
1. दि लाइफ डिवाइन, भाग-1, पृ. 108; 3. ठाणं 4/603
Jain Education International
2. उत्तराध्ययन 20/37
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org