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________________ व्यक्तित्व और लेश्या calm careful thoughtful peaceful controlled reliable even-tempered passive -STABLE leadership carefree lively easygoing responsive talkative INTROVERTED outgoing sociable quiet unsociable reserved pessimistic sober rigid anxious -UNSTABLE EXTROVERTED Jain Education International moody touchy restless optimistic active aggressive excitable changeable impulsive ऐसे भी व्यक्ति होते हैं जिनमें बहिर्मुखता और अन्तर्मुखता दोनों होती हैं । सामान्यतः कोई भी व्यक्ति न सिर्फ बहिर्मुखी होकर जी सकता है और न सिर्फ अन्तर्मुखी । इसीलिए बाद में उभयमुखी व्यक्तित्व को स्वीकृति दी । उभयमुखता व्यक्तित्व की ऐसी प्रवृत्ति है जो बहिर्मुखता एवं अन्तर्मुखता में सन्तुलन बनाए रखती है। 141 अन्तर्मुखता का प्रधान लक्षण है सामाजिक संबंधों से बचना | स्वयं में केन्द्रित रहना । अन्तर्मुखता के कारण व्यक्ति का दृष्टिकोण वस्तुनिष्ठ नहीं रहता। वह सभी वस्तुओं का मूल्यांकन करते समय अपने को केन्द्र में रखता है । - भारतीय दर्शन में भी सत्व, रजस एवं तमस इन तीन गुणों के आधार पर भावप्रकाश में सात्विक, राजसिक और तामसिक व्यक्तित्व के तीन प्रकारों का उल्लेख है । एच. जे. आइजनेक (Eysenck) ने युंग द्वारा वर्णित बहिर्मुखी एवं अन्तर्मुखी व्यक्तित्व का गहन अध्ययन करके व्यक्तित्व के निषेधात्मक एवं विधेयात्मक गुणों को प्रस्तुत किया है। सात्विक व्यक्तित्व - सत्वगुणप्रधान व्यक्ति आस्थावान होता है। वह सद्-असद् भोजन का विवेक रखता है। क्रोध नहीं करता । सत्य भाषा बोलता है। सत्त्वगुण से अन्वित पुरुष की मेधा, बुद्धि, धृति, क्षमा, करुणा, आत्मज्ञान, दम्भहीनता, आनन्दशीलता, कर्मशीलता, निस्पृहता, विनम्रता, धर्मानुष्ठान की मनोवृत्ति उल्लेखनीय होती है । 2. वही 16 / 1-3 राजसिक व्यक्तित्व - रजोगुणप्रधान मनोवृत्ति वाले व्यक्तित्व में क्रोध, ताड़नशीलता, अत्यन्त दुःख, सुखैषणा, दम्भ, कामुकता, असत्यसंभाषण, अधीरता, दुष्कर्म, ऐश्वर्य का अतिशय, अहं, अधिक परिभ्रमण, चंचलता जैसे गुणों का प्राधान्य रहता है । तामसिक व्यक्तित्व - तमोगुणप्रधान तामसिक मनोवृत्ति वाले व्यक्तियों में नास्तिकता, अतिशय विषण्णता, अति प्रमाद, दुष्टबुद्धि, निन्दा में सुख की प्राप्ति, अज्ञान, क्रोध और मूर्खता जैसे अवगुणों का संचयन रहता है। - गीता में श्रीकृष्ण ने आसुरी और दैविक गुणों के द्वारा व्यक्तित्व को विभाजित किया है - आसुरी सम्पदा सम्पन्न व्यक्तित्व' दैविक सम्पदा सम्पन्न व्यक्तित्व' कर्त्तव्याकर्त्तव्य के ज्ञान का अभाव • दुष्टात्मा एवं चिन्ताग्रस्त • शांतचित्त एवं स्वच्छ अन्तःकरण वाला • तत्वज्ञान के लिए ध्यान में निरन्तर अवस्थित 1. गीता 16 / 7-8; For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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