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लेश्या और मनोविज्ञान
यह तथ्य स्पष्ट है कि व्यक्तित्व निर्माण में बाह्य निमित्तों की अनुकूलता या प्रतिकूलता उतना महत्त्व नहीं रखती, जितना उपादान कारण के रूप में भीतरी चेतना की शुद्धता या मलिनता महत्त्व रखती है। ____ व्यवहार की भूमिका पर लेश्या की शुभता-अशुभता के आधार पर ही हम व्यक्तित्व के प्रकार निर्धारित कर सकते हैं। व्यक्तित्व प्रकार ___व्यक्तित्व विभिन्न गुणों की समष्टि का नाम है । इसे प्रकारों में बांटने का सिद्धान्त मनुष्य की विविधताओं के बीच क्रम लाने का प्रयास है। मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व-प्रकार की कई दृष्टिकोणों से चर्चा की है।
प्राचीन समय में जैविक गुणों के आधार पर व्यक्तित्व के प्रकार किए गए। हिप्पोक्रेट्स (Hippocrates) और उसके बाद गेलन (Gelan) ने शारीरिक स्वभाव के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण इस प्रकार किया - 1. श्लैष्मिक - जो धीमे, निर्बल और निरुत्तेजित होते हैं। 2. विषादी - जो निराशावादी होते हैं। 3. कोपशील - जो शीघ्र ही उत्तेजित हो जाते हैं। 4. आशावान - जो बहुत शीघ्र कार्य करते हैं एवं प्रसन्न रहते हैं।'
शारीरिक रचना और चित्त प्रकृति के आधार पर किया गया क्रैशमर और शैल्डन का व्यक्तित्व-प्रकार शारीरिक प्रारूप और मानसिक व्यक्तित्व क्रमों में सह-संबंध प्रकट करता है। क्रैशमर और शैल्डन के व्यक्तित्व-प्रकार प्रस्तुत सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण हैं।
फ्रायड के अनुसार अचेतन के स्तर पर इदम्, अहम् और परम अहम् में से जो तत्त्व अधिक होगा, व्यक्तित्व वैसा ही होगा। यदि व्यक्ति का इदम् शक्तिशाली है तो व्यक्ति निम्नकोटि का, कामी, क्रोधी तथा सुखैषणा में डूबा रहेगा और यदि परम अहम् उच्च है तो वह नैतिक व आदर्शवादी होगा। व्यक्ति का अहम् शक्तिशाली होगा तो वह यथार्थवादी होगा। अहम् के शक्तिहीन होने पर वह इदम् व परम अहम् के संघर्षों की मध्यस्थता नहीं कर पाएगा। फलत: उसका जीवन संघर्षों, दुविधाओं, असन्तुलन और अव्यवहारिकता से भरा हुआ होगा।
फ्रायड के बाद कार्ल युंग द्वारा किया गया व्यक्तित्व-प्रकार सर्वाधिक लोकप्रिय बना। युंग के अनुसार व्यक्ति दो प्रकार के होते हैं - बहिर्मुखी और अन्तर्मुखी। बहिर्मुखता का शाब्दिक अर्थ है अपने से बाहर जाना, अपने प्राकृतिक और सामाजिक पर्यावरण की वस्तुओं में अधिक रुचि लेना और अपने विचारों तथा भावनाओं की उपेक्षा करना।
1. डॉ. सीताराम जायसवाल, व्यक्तित्व सिद्धान्त, पृ. 200
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