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________________ व्यक्तित्व और लेश्या उत्प्रेरणा है, व्यक्ति में कामवासनाएं, आवेग, मनोवृत्तियां, संज्ञाएं सभी संगृहीत रहते हैं । 2. समाकलनात्मक परिभाषा के अनुसार लेश्या के आधार पर बनने वाला हर व्यक्तित्व स्वयं में एक इकाई है। वह कभी किसी जैसा नहीं होता। उसकी अनन्यता और गुणात्मक विशेषता उसके आत्मविकास की सूचक बनती है। 3. सोपानित परिभाषा के अनुसार जैन आगमों में व्यक्तित्व को कषाय की तीव्रता और मन्दता के आधार पर कृष्णलेशी, नीललेशी, कापोतलेशी, पद्मलेशी, तेजोलेशी, शुक्ललेशी - इन छह वर्गों में बांटा गया है। 129 4. समायोजित परिभाषा के अनुसार जैन दर्शन व्यक्तित्व विकास में समायोजन की गुणात्मकता जरूरी समझता है। जो व्यक्ति परिस्थितियों के साथ समायोजन करना जानता है अथवा परिस्थितियों को बदलना जानता है, वही परिपक्व व्यक्तित्व का धनी है । एक कृष्णलेशी समायोजन द्वारा शुभलेशी बन सकता है। शुभ लेश्याओं के जागृत होने पर मनुष्य की भावशुद्धि होती है, आचरण पवित्र होता है और उसमें समता, सन्तुलन, धैर्य जैसे गुणों का अवतरण होता है । तैजसलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या के साथ जुड़ा व्यक्तित्व इसी श्रेणी में आता है। व्यक्तित्व निर्माण के घटक : निमित्त और उपादान कार्यकारण की मीमांसा में निमित्त और उपादान दोनों पर विस्तार से विमर्श किया गया है। बिना उपादान कार्य सम्पन्नता बिना बीज की फसल जैसी निराधार परिकल्पना है । अत: उपादान आवश्यक है। पर इसके साथ निमित्तों की भी अपनी विशिष्ट भूमिका है। व्यक्तित्व के निर्माण, वृद्धि और विकास के सन्दर्भ में मनोविज्ञान कई कारकों की चर्चा करता है, जिनमें प्रमुख ये हैं 1. वंशानुक्रम 2. परिवेश / वातावरण 3. शरीर रचना 4. नाड़ी-ग्रंथि संस्थान 5. शरीर रसायन । जैन दर्शन के अनुसार व्यक्तित्व का मूल स्रोत कार्मण शरीर है। पर बाह्य स्तर पर और भी कई दूसरे निमित्त हैं जिनका सहयोग आवश्यक है । - वंशानुक्रम मनोविज्ञान में वैयक्तिक भिन्नता का अध्ययन आनुवंशिकता तथा परिवेश के आधार पर किया जाता है। जीवन का प्रारम्भ माता के डिम्ब और पिता के शुक्राणु के संयोग से होता है। व्यक्ति के आनुवंशिक गुणों का निश्चय क्रोमोजोम द्वारा होता है। क्रोमोजोम अनेक जीन्स का एक समुच्चय है। ये जीन्स ही माता-पिता के आनुवंशिक गुणों के संवाहक हैं । इन्हीं में व्यक्ति की शारीरिक व मानसिक क्षमताएं संनिहित होती हैं। ऐसी कोई भी क्षमता प्रकट नहीं हो सकती है जो जीन्स में न हो । Jain Education International जैन ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है कि सन्तान के शरीर में मांस, रक्त और मस्तुलुंग (भेजा ) - ये तीन अंग माता के और हाड़, मज्जा, केश-दाढ़ी, रोम, नख आदि पिता के For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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