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________________ लेश्या और मनोविज्ञान मद्रास के गवर्नमेंट जनरल अस्पताल के इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोलॉजी के डॉ. पी. नरेन्द्रन के नेतृत्व में डॉक्टरों के एक दल ने किलियान फोटोग्राफी की तकनीक को विकसित कर आभामण्डल के फोटो लेने के उपकरण का आविष्कार किया। डॉ. नरेन्द्रन का कहना है कि जीवित प्राणी में से निकलने वाला आभामण्डल न तो उष्मा है और न ध्वनि, वह एक प्रकार की तरंगों के रूप में होता है। स्वस्थ - अस्वस्थ, मृत जीवित, सजीव-निर्जीव वस्तुओं के आभामण्डल में निश्चय ही विभिन्नताएं होती हैं । 124 डॉ. नरेन्द्र के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के पास अन्त:दर्शन की शक्ति है और यदि उसे विकसित किया जा सके तो मनुष्य जाति के लिये वह अनेक प्रकार से उपयोगी सिद्ध हो सकता है। ओरा के वैज्ञानिक परीक्षणों के बाद यह बात तो निश्चित हो चुकी है कि स्वस्थ व्यक्ति में शरीर के सभी स्तरों पर आभामण्डल की विकिरणें सीधे कोण पर निकलती हैं। अस्वस्थ व्यक्ति के बीमारी, थकावट या संवेगात्मक तनाव की स्थिति में ओरा पर प्रकाश रुक जाता है और उसी स्थान पर रोग के चिह्न उभर आते हैं। आभामण्डल के रंग व्यक्तित्व को बताने वाले हैं तो बाहर से गृहीत रंगीन परमाणु आभामण्डल को प्रभावित करते हैं । रंग मनोविज्ञान व्यक्तित्व विश्लेषण में रंगों के गुणात्मक तथ्यों पर विशेष शोध कर रहा है कि रंगों की छवियां बदलकर कैसे व्यक्तित्व रूपान्तरण किया जा सके ? शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक तनावों से मनुष्य को कैसे मुक्त रखा जा सके ? प्राणी के भाव जगत से जुड़े अच्छे-बुरे रंगों की सूक्ष्म व्याख्या सदियों पूर्व जैन आगम ग्रन्थों में लेश्या सिद्धान्त के अन्तर्गत की गई। लेश्या सम्प्रत्यय अन्तःकरण की सही सूचना का मानक है। आत्मविशुद्धि की दृष्टि से आत्मशोधन की प्रक्रिया से गुजरना भी अत्यावश्यक है। अतः सर्वप्रथम अशुभ से शुभ लेश्या में आना मंजिल की शुरूआत माना जा सकता है। इसी दृष्टि से लेश्या/आभामण्डल के लिए जैनाचार्यों ने ध्यान का उपक्रम' प्रस्तुत किया। लेश्या में परिवर्तन संभाव्य बतलाया, क्योंकि लेश्या कारण नहीं, कार्य है। रंग मनोविज्ञान ने भी इसी सिद्धान्त को दुहराया। अतः लेश्याविशुद्धि के सन्दर्भ में आभामण्डल की चर्चा एक सार्थक प्रयत्न है । 1. प्रेक्षाध्यान : लेश्याध्यान, पृ. 22-26; 2. देखें - "लेश्या और ध्यान" अध्याय में । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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