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लेश्या और आभामण्डल
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आभामण्डल में पीतवर्ण की प्रधानता हो तो माना जा सकता है कि वह व्यक्ति अल्प क्रोध, मान, माया और लोभ वाला, प्रशान्त चित्त वाला, समाधिस्थ, अल्पभाषी, जितेन्द्रिय और आत्म संयम करने वाला है।
आभामण्डल में श्वेत वर्ण की प्रधानता हो तो माना जा सकता है - वह व्यक्ति प्रशान्त चित्त वाला, जितेन्द्रिय, मन, वचन और काया का संयम करने वाला, शुद्ध आचरण से सम्पन्न, ध्यानलीन और आत्म संयम करने वाला है। क्या आभामण्डल दृश्य है ?
यद्यपि विज्ञान के विश्लेषण व अध्ययन ने इस बात की पुष्टि की है कि आभामण्डल से निकलने वाली रश्मियों को प्रिज्म के माध्यम से या नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता। इसका वैज्ञानिक कारण बताया कि आभामण्डल के रंग सौर स्पेक्ट्रम के सामान्य रंगों की भांति नहीं होते हैं। सौर स्पेक्ट्रम के पराबैंगनी किरणों को जिनकी तरंगदीर्घता बहुत कम होती है, मुश्किल से ही देखा जाता है। आभामण्डल के रंग की तरंगदीर्घता तो उनसे भी कई गुणा कम होती है, इसीलिये इन्हें सामान्य दृष्टि द्वारा नहीं देखा जा सकता। इसे विशेष अन्तर्दृष्टि प्राप्त महापुरुष ही देख सकते हैं। शताब्दियों तक यही माना जाता रहा कि आभामण्डल को सिर्फ अन्तर्द्रष्टा ही देख सकते हैं।
धार्मिक एवं रहस्यवादी परम्परा में और आज के वैज्ञानिक युग की अवधारणा के बीच काफी दूरी रही है। रूस के प्रो. किर्लियान ने अन्वेषण कर यह सिद्धान्त दिया कि ओरा को उपकरणों के माध्यम से भौतिक आंखों द्वारा भी देखा जा सकता है।
इस संबंध में बाल्टर जॉन किलनर, जो 1869 में लंदन के सेंट थामस अस्पताल में फिजिशियन और सर्जन थे, उन्होंने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया कि स्क्रीन से किसी व्यक्ति का परीक्षण किया जाता है तो उसके सिर, हाथों के चारों ओर एक हल्की-सी स्लेटी रंग की धुंध दिखाई देती है। यदि स्क्रीन हटा भी दी जाए तो बाद में कुछ क्षण तक यह धुंध दिखाई देती है।
उन्होंने यह भी बताया कि मनुष्य में कभी-कभी दो या तीन आभामण्डल भी दिखाई दे सकते हैं। एक शरीर के पास लकीर की भांति होता है जो कि त्वचा से लगभग पौन इंच तक फैला रहता है। दूसरा कुछ चौड़ा परन्तु बिना किसी निश्चित आकृति वाला लगभग दो या तीन इंच चौड़ा होता है और इससे परे तीसरा ओरा जो लगभग 6 इंच तक का हो सकता है। बहुत सूक्ष्मता से देखने पर ज्ञात होता है कि शरीर और प्रथम आभामण्डल के बीच होने वाले खाली स्थान को उन्होंने इथरीक डबल (Etheric double) के नाम से पहचाना। यह शरीर एवं आभामण्डल के मध्य विभाजक का कार्य करता है।
1. Walter J. Kilner, The Human Atmosphere, An Exhaustive Survey
Compiled by Health Research, Colour Healing, p. 80
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