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लेश्या और मनोविज्ञान
__भौतिक साधना के अन्तर्गत एक तरीका यह भी है कि रोगी को जिस रंग की अपेक्षा हो, उस रंग के रिबन या कपड़े के टुकड़े लेकर वह निर्निमेष दृष्टि से तब तक देखता रहता है जब तक उसे यह अनुभव न होने लगे कि यह रंग उसकी चेतना तक प्रवेश कर गया है।
मानसिक साधनों में रोगी को रंग विशेष की भावना से इस प्रकार भावित कराया जाता है कि वह गहराई से महसूस करे कि श्वास के माध्यम से रंग अन्दर प्रवेश कर रहा है। रहस्यवादी विज्ञान मानता है कि प्राण की आपूर्ति सीधे प्रकाश से होती है। फिर भी रंगीन प्रकाश में लयबद्ध गहरा श्वास ऊर्जा के प्रवाह को बढ़ा देता है। रोगी को मानसिक रूप से ध्यान एकाग्र करने के लिए कहा जाता है। यह उपचार आभामण्डल के रंग को बदलने में सहयोगी बनता है।
रोनाल्ड हण्ट ने रंग श्वास के बारे में कहा कि यदि रोगी के इलाज के लिए लाल, नारंगी या पीले रंग की अपेक्षा हो तो उसे कल्पना करनी चाहिए कि ये रंग पृथ्वी से उसके पैर के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर रहे हैं और यदि नीला, जामुनी और बैंगनी रंग की अपेक्षा हो तो कल्पना करनी चाहिए कि ये रंग आसमान से उसके मस्तिष्क के माध्यम से प्रवेश कर रहे हैं और हरा रंग सामने की हरियाली में से प्रवेश कर रहा है।
ये सारे साधन तब तक उपयोगी सिद्ध नहीं हो सकते, जब तक रोगी मानसिक रूप से तैयार न हो। रंग चिकित्सा में अन्तिम तत्त्व है - इच्छा। एक महत्त्वपूर्ण विशेषता इस चिकित्सा की यह भी है कि मनुष्य के स्वभाव को परिवर्तित किया जा सकता है। क्रोधी को शान्त और सुस्त व्यक्ति को क्रियाशील बनाया जा सकता है।
रंग की मनोवैज्ञानिक, भौतिक एवं चिकित्सा संबंधी चर्चा का एक मात्र उद्देश्य है रंग की गुणात्मकता जो जानना, जानकर उसे प्रयोग में लाना और जीवन को बदलना।
इस अध्याय में रंग को विविध कोणों से संकलित करने का मुख्य उद्देश्य यह रहा है कि रंग की प्रभावकता जीवन से जुड़ी है और लेश्या की व्याख्या भी हम रंगों की भाषा में करते हैं । लेश्या का हर पौद्गलिक एवं चैतसिक पक्ष व्यक्तित्व पर प्रभाव छोड़ता है। लेश्या जीवन को रूपान्तरण दे सकती है यदि इसकी मनोवैज्ञानिक भूमिका पर जीवन को प्रयोगशाला बना दी जाए। इसलिए रंगों की बाह्य एवं आन्तरिक गुणात्मक भूमिका को समझना जरूरी है। और इस सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण बात है लेश्या रंगों का ध्यान करना, जिसकी चर्चा लेश्या ध्यान संबंधी अध्याय में विस्तारपूर्वक की गई है।
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