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रंगों की मनोवैज्ञानिक प्रस्तुति
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सफेद रंग - निर्दोषता, पवित्रता, खुशी और ईश्वर की विद्यमानता का अर्थ लिए
हुए प्रकाश का प्रतीक है। लाल रंग -
परोपकार और उच्च बलिदान का अर्थ लिए हुए साहस और युद्ध का
प्रतीक है। हरा रंग - शाश्वत जीवन की खुशी का अर्थ लिए प्रकृति का प्रतीक है। बैंगनी रंग - दुःख और उदासी को व्यक्त करता हुआ पीड़ा और उद्विग्नता का
प्रतीक है। काला रंग - मृत्यु के दुःख और कब्र की कालिमा का प्रतीक है।
प्राचीन परम्परा के अनुसार लाल रंग साहस और उत्साह का, नीला रंग धर्मनिष्ठा और वफादारी का, पीला सम्मान और स्वामी-भक्ति का, हरा विकास और आशा का, सफेद कर्तव्य और पवित्रता का, काला रंग दुःख-शोक-पश्चात्ताप का, नारंगी रंग क्षमासहनशीलता, शान्ति का और बैंगनी प्रतिष्ठा एवं गौरव का प्रतीक माना गया है।
रंगों के आधार पर मनुष्य के विचार, भाव, रुचि, जाति, तत्त्व, प्रकृति का ही प्रतीकात्मक वर्णन नहीं किया गया अपितु नाट्यशास्त्र में रसों को भी रंगों के आधार पर नई पहचान दी गई।
शृंगार रस का रंग श्याम प्रेम संबंधी कामुकता को उद्दीप्त करता है। हास्य रस का रंग सफेद विनोदप्रियता और मनमौजीपन का प्रतीक है। करुण रस का कापोत रंग यानी हल्का नीला धूसर रंग जिसमें दया और करुणा के भाव सनिहित रहते हैं। रौद्र रस का लाल रंग आन्तरिक क्रोध को दर्शाता है। वीर रस का गौरवर्ण वीरता/बलिदान का रंग है। भयानक रस का कृष्ण वर्ण दिमाग में भय पैदा करता है। बीभत्स रस का नील वर्ण नफरत, घृणा, विरोध, अनिच्छा को दर्शाता है। अद्भुत रस का पीला रंग प्रकृति के रहस्यात्मक पहलू पर आश्चर्यमयी दृष्टि का निर्माण करता है।
स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के डॉ. रोबर्ट आर. रॉस (Dr. Robert R. Ross) ने नाटक की गहनता एवं संवेगों के साथ भी रंगों का संबंध जोड़ा है। उन्होंने सलेटी, नीला और बैंगनी रंग को दुःखान्त नाटक से बहुत ज्यादा संबंधित माना है तथा लाल, नारंगी और पीला रंग सुखान्त के लिये अच्छा माना है। इसी प्रकार केलीफोर्निया के विलियम ए. वैलमेन (William A. Wellmann) ने नाटक मंच पर कार्य किया और उन्होंने बताया
1. भरत नाट्यशास्त्रम् - 6/42, 43
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