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रंगों की मनोवैज्ञानिक प्रस्तुति
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गीष्म
धातु
संवेगात्मक तथा आध्यात्मिक रूप से मनुष्य के आचरण एवं व्यवहार पर प्रभाव डालते हैं। यद्यपि ग्रह भाग्य नहीं बदलते, किन्तु उनसे आने वाली किरणों को झेलने की क्षमता अवश्य देते हैं । रत्नों का जो प्रभाव हम पर होता है वह ग्रहों के रंगों और उनके प्रकाश से निकलने वाली किरणों की प्रकम्पन क्षमता के कारण है। रत्न एवं उनसे विकिरित होने वाले रंगों की चर्चा डॉ. भट्टाचार्य ने अपनी पुस्तक जैम थेरेपी में इस प्रकार की है :
माणिक्य - लाल, मोती - नारंगी, मूंगा - पीला, पन्ना - हरा, पुखराज - नीला, हीरा - जामुनी, नीलम - बैंगनी।
चीन में मौसम के साथ रंगों का संबंध जोड़कर चिकित्सा के क्षेत्र में तत्त्व, दिशा और अंगों के निर्धारण करने का उल्लेख भी मिलता है। मौसम रंग
तत्त्व दिशा अंग । बसन्त हरा लकड़ी पूर्व यकृत
लाल अग्नि दक्षिण हृदय पतझड़ सफेद
पश्चिम फेफड़े शरद नारंगी
उत्तर गुर्दे रंगों के सन्दर्भ में सभी राष्ट्रों में जातीय स्वाभिमान के साथ रंग का ज्ञान जोड़ा गया। डार्विन ने अपनी पुस्तक 'डीसेन्ट ऑफ मैन' में लिखा - हर जाति के मनुष्यों में सुन्दरता का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व शरीर के रंग को माना जाता है। सम्भवतः यही कारण होगा कि मिस्रवासी अपने को लाल जाति के सदस्य मानते हैं। लाल ही सौन्दर्य प्रसाधनों का प्रयोग करते हैं । स्वयं को लाल रंग में ही अभिव्यक्त करते हैं । मिस्रवासियों ने चार जातियों के चार रंग बतलाए - स्वयं का लाल, एशियावासियों का पीला, भूमध्यवासी क़ा सफेद तथा नीग्रो का काला रंग माना। अरबवासियों ने लाल और सफेद दो रंगों में ही जातियों को पहचान दी। भारत में भी मूलरूप से चार जातियां मानी गई हैं जिन्हें चार वर्ण कहते हैं। वर्ण का अर्थ रंग भी होता है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र - इन चार जातियों का क्रमशः सफेद, लाल, पीला और काला रंग माना गया है।
शरीर शास्त्रीय दृष्टि से भी शरीर के प्रत्येक अंग एवं विभिन्न संस्थानों विशेषतः अन्तःस्रावी ग्रंथि संस्थान की प्रत्येक ग्रंथि का रंग निर्धारित किया गया है। हेल्थ रिसर्च पब्लिकेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार शरीर के अंगों तथा अन्तःस्रावी ग्रंथियों का रंग निर्धारण इस प्रकार किया है -
1. Benoytosh Bhattacharya, Gem Therapy, p. 21 2. R.B. Amber, Color Therapy, p. 92, 93
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