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निर्विचारता और सामायिक में आएगी जब हम भी अंगरखे की खोज मे गांव-गांव में भटक लेंगे, विचारों की पूरी यात्रा कर लेंगे और चिन्तन के पूरे संपर्कों को समझ लेंगे । यह बात तभी समझ में आ सकेगी, तभी इस सचाई को जान सकेंगे, पहचान सकेंगे, पचा सकेंगे। आकर्षक है निर्विचारता की बात
अचिन्तन और निर्विचारता की बात बड़ी आकर्षक लगती है, क्योंकि हम निरन्तर चिन्तन में जी रहे हैं और चिन्तन में जीने का अनुभव कर रहे हैं । किन्तु जब हमारे सामने अचिन्तन की बात आती है, नहीं सोचने की बात आती है, विचार-शून्य होने की बात आती है तब सहज ही आर्कषण पैदा हो जाता है, मन होता है कि वैसा जीवन जीया जाए | क्या यह सम्भव है ? क्या ऐसा हो सकता है कि आदमी बिना चिन्तन और विचार-शून्यता का जीवन जी सके । विचार का इतना तीव्र प्रवाह और इतनी लम्बी श्रृंखला है कि कहीं भी उसका तान्ता टूटता नहीं है । एक के बाद एक विचार आता जाता है । कहीं वह रुकता नहीं । निरन्तर गतिशील रहता है । उसका कहीं अन्त नहीं आता । ऐसी स्थिति में क्या यह सम्भव है कि हम निर्विचारता की बात सोच सकें और ऐसा जीवन जी सकें ? यह प्रश्न सहज है । ऐसी जिज्ञासा होती है और आकर्षण भी पैदा होता है । इसी के आधार पर हम इस दिशा में प्रयत्नशील हो जाते है।
मूल्य अचिन्तन का
चिन्तन की अपेक्षा अचिन्तन का बहुत बड़ा मूल्य है । यह बहुत अर्थवान् बात है । हम यह जानते हैं कि अधिक सोचना, अधिक चिन्तन करना शक्ति को क्षीण करना है । हर कर्म या प्रवृत्ति शक्ति को क्षीण करती है । शरीर का कर्म, वाणी, मन या चिन्तन का कर्म-प्रत्येक कर्म शक्ति का ह्रास करता है । शरीर शास्त्री बतलाते हैं कि प्रत्येक प्रवृत्ति के साथ हमारे शरीर में विष पैदा होता है, शक्ति क्षीण होती है । जो आदमी बहुत सोचता रहता है, उसके बीमारियां पैदा हो जाती हैं, मानसिक विकृतियां पैदा हो जाती हैं । जो
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